- नसीरुद्दीन हैदर खाँ
‘गुल मकई’ की उम्र भी ऐसी ही थी। पाकिस्तान के ख़ूबसूरत इलाके स्वात की रहने वाली। अफ़गानिस्तान के रास्ते तालिबान ने जब पाकिस्तान की ओर क़दम बढ़ाया तो स्वात और उसके जि़ंदादिल लोग रास्ते में आए। तालिबान तो तालिबान हैं। वे हिटलर की तरह दुनिया को एक रंग में रचने का ख़्वाब देखते हैं। उन्होंने स्वात के कई इलाकों पर कब्ज कर लिया। स्कूलों को निशाना बनाने लगे और ख़्ज़सतौर पर लड़कियों के स्कूलों को। उन्होंने स्कूल बंद करने का फ़रमान जरी किया। स्कूल गिरा दिए। अंदाज है कि 2001 से 2009 के बीच उन्होंने करीब चार सौ स्कूल ढहा दिए। इनमें से 70 फीसदी स्कूल लड़कियों के थे। उन्होंने लड़कियां का बाहर निकलना मुश्किल कर दिया। लड़कियों के स्कूल जने पर पाबंदी लगाने का एलान कर दिया। तालिबान को स्वात से निकालने के लिए फ़ौज की कार्रवाई भी चल रही थी। इसी बीच बीबीसी उर्दू पर ‘गुल मकई’ सामने आई। गुल मकई की नज़र से दुनिया ने तालिबान के शासन में जिंदगी के बारे में जना। ख़ासतौर पर लड़कियों और महिलाओं की जि़ंदगी के बारे में। डायरी जनवरी से मार्च 2009 के बीच दस किस्तों में बीबीस उर्दू की वेबसाइट पर पोस्ट हुई। स्वात से लेकर दुनिया के कई हिस्सों में इस डायरी ने तहलका मचा दिया। दिसम्बर 2009 में पता चला कि ‘गुल मकई’ स्वात की ही बेटी है और उसका नाम मलाला युसूफ़ज़ई है। तालिबान से बचाने के लिए उसे यह नाम दिया गया था। पहचान ज़हिर होते ही वह दुनिया की नज़रों में बहादुर मलाला बन गई लेकिन तालिबान के आंखों की किरकिरी। उसके पिता जियाउद्दीन युसूफ़ज़ई उन कुछ लोगों में शामिल हैं, जो स्वात को तालिबान से बचाने में जुटे थे। पूरा परिवार तालिबान के निशाने पर आ गया। इस बीच मलाला को अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय कई सम्मान मिले। लेकिन तालिबान के बदले की आग ठंडी नहीं हुई। जब लग रहा था कि सब कुछ ठीक हो रहा तो इसी महीन 9 अक्टूबर को तालिबान हमलावारों ने 14 साल की मलाला पर जनलेवा हमला किया। दुनिया भर के करोड़ों लोगों की दुआओं और डॉक्टरों की अथक मेहनत का नतीज है कि वह अब ठीक हो रही है। मलाला ने जो डायरी के पन्ने लिखे, वह एन फ्रैंक की डायरी की ही तरह हमें उस दुनिया से दो-चार कराते हैं, जिनमें वह रह रही थी।

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