" समाज में फैली बुराइयों को मिटाने और भ्रस्टाचार को उखाड़ फेंकने वाला ही इन पुलिस वालो की गोली का निशाना बन जाता है! या फिर किसी और के द्वारा ऐसे पत्रकारों को गोली मार दी जाती है, जो समाज से बुराई को जड़ से ख़त्म करने के लिए अपनी ज़िन्दगी कि परवाह किये बगैर जी तोड़ कोशिश करता है "
- इमरान ज़हीर
अभी हाल ही में गाजीपुर जिले में दैनिक आज के फोटोग्राफर गुलाब राय पर फोटो खीचे जाने की वजह से हमला बोल दिया गया| आइये मीडिया में प्रकाशित कुछ हेडिंग पर नज़र डालते है " फोटोग्राफर पर हमला : आरोपियों की गिरफ्तारी में निष्क्रियता दिखा रही पुलिस" , "प्रेस क्लब अध्यक्ष के साथ मारपीट, तीन हिरासत में", "एटा में बेलगाम पुलिस ने की दो फोटोग्राफरों की पिटाई" , "बीबीसी के तीन पत्रकारों को बंधक बनाकर पीटा गया" , "रिपोर्टर नरेश कुमार सहगल पर हमले के मामले में कोई कार्यवाही नहीं" , "हजारीबाग में तीन मीडियाकर्मियों से मारपीट, कैमरे छीने गए", "बसपा विधायक के गुर्गों ने चार पत्रकारों को पेड़ से बांधकर पीटा" , "चैनल के एडिटर को बिल्डर ने दी जान से मारने की धमकी" , "सीबीआई करेगी पत्रकार सुशील पाठक हत्याकांड की जांच" , ऐसी ही सैकड़ो दुखद भरे शीर्षक से खबरे ना जाने कितने अखबारों और चैनलों में आये दिन सुर्खियाँ बनती नज़र आती है| क्या ऐसे में बुराइयों से लड़ने वाले इन कलम के सिपाहियों को कलम चलाना छोड़ देना चाहिए ? आज इस समाज में कलम के सिपाहियों की हत्या की जा रही है क्यों? क्या सिर्फ इस कारण कि वह समाज में फैली बुराईयों को जड़ से ख़त्म करने की कोशिश करता है इसलिए? लोगो को उनके अधिकार से परिचय कराता है इसलिए? और समाज में फैली बुराइयों को मिटाने और भ्रस्टाचार को उखाड़ फेंकने वाला ही इन पुलिस वालो की गोली का निशाना बन जाता है! या फिर किसी और के द्वारा ऐसे पत्रकारों को गोली मार दी जाती है, जो समाज से बुराई को जड़ से ख़त्म करने के लिए अपनी ज़िन्दगी कि परवाह किये बगैर जी तोड़ कोशिश करता है|
- इमरान ज़हीर
कितने दुःख की बात है की आज समाज को आइना दिखने वाले समाज के सजग प्रहरी और कलम के सिपाहियों को मौत के घात उतार दिया जा रहा है या फिर उनपर जानलेवा हमला किया जा रहा है | समाज में कलम के सिपाही लोगो को सही रास्ता दिखाने का काम करते है और समाज में फैली बुराइयों को आमजन तक पंहुचा कर अच्छे बुरे की पहचान कराते है, लेकिन आज उनकी मौत की खबर हो या उनपर जानलेवा हमला हो रहा हो ऐसी खबरे आये दिन अखबारों/मीडिया में सुर्खियाँ बनती नज़र आती है|
पिछले दिनों काफी चर्चा में रहे एक नक्सली नेता के साथ एक पत्रकार को भी गोली का निशाना बना कर पुलिस ने अपनी कायरता का परिचय दिया था| इस तरह कलम के सिपाही को मौत के घात उतारने वालो की हरकत और मंशा सिर्फ एक नज़र आती है की इन कथित पुलिस वालो ने कही न कही से अपनी दुश्मनी एक पत्रकार से भी निकाली है जो इन भ्रस्टाचार के दलदल में डुबकियाँ लगा रहे बेलगाम पुलिस वालो के गलत कारनामों को उजागर कर समाज के सामने ला कर खड़ा करता है|
अभी हाल ही में गाजीपुर जिले में दैनिक आज के फोटोग्राफर गुलाब राय पर फोटो खीचे जाने की वजह से हमला बोल दिया गया| आइये मीडिया में प्रकाशित कुछ हेडिंग पर नज़र डालते है " फोटोग्राफर पर हमला : आरोपियों की गिरफ्तारी में निष्क्रियता दिखा रही पुलिस" , "प्रेस क्लब अध्यक्ष के साथ मारपीट, तीन हिरासत में", "एटा में बेलगाम पुलिस ने की दो फोटोग्राफरों की पिटाई" , "बीबीसी के तीन पत्रकारों को बंधक बनाकर पीटा गया" , "रिपोर्टर नरेश कुमार सहगल पर हमले के मामले में कोई कार्यवाही नहीं" , "हजारीबाग में तीन मीडियाकर्मियों से मारपीट, कैमरे छीने गए", "बसपा विधायक के गुर्गों ने चार पत्रकारों को पेड़ से बांधकर पीटा" , "चैनल के एडिटर को बिल्डर ने दी जान से मारने की धमकी" , "सीबीआई करेगी पत्रकार सुशील पाठक हत्याकांड की जांच" , ऐसी ही सैकड़ो दुखद भरे शीर्षक से खबरे ना जाने कितने अखबारों और चैनलों में आये दिन सुर्खियाँ बनती नज़र आती है| क्या ऐसे में बुराइयों से लड़ने वाले इन कलम के सिपाहियों को कलम चलाना छोड़ देना चाहिए ? आज इस समाज में कलम के सिपाहियों की हत्या की जा रही है क्यों? क्या सिर्फ इस कारण कि वह समाज में फैली बुराईयों को जड़ से ख़त्म करने की कोशिश करता है इसलिए? लोगो को उनके अधिकार से परिचय कराता है इसलिए? और समाज में फैली बुराइयों को मिटाने और भ्रस्टाचार को उखाड़ फेंकने वाला ही इन पुलिस वालो की गोली का निशाना बन जाता है! या फिर किसी और के द्वारा ऐसे पत्रकारों को गोली मार दी जाती है, जो समाज से बुराई को जड़ से ख़त्म करने के लिए अपनी ज़िन्दगी कि परवाह किये बगैर जी तोड़ कोशिश करता है|
ऐसा कब तक चलता रहेगा कब तक बुराइयों से लड़ने वाले मौत के मुह में जाते रहेंगे? आज इस भ्रष्ट समाज में कोई भी पत्रकार सुरक्षित क्यों नहीं है? उनकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी लेने वाले लोग ही उनकी हत्या क्यों कर रहे है? समाज के इस सजग प्रहरी की सुरक्षा के प्रति सरकार संवेदनशील क्यों नहीं हो रही है? ऐसे तमाम सवाल हर पत्रकार के दिमाग में गूँज रहे है जो इस समाज में फैली तमाम बुराइयों को जड़ से ख़त्म करने और भ्रष्ट लोगो को बेनकाब करने के लिये जोखिम उठाने के साथ साथ समाज को एक सही दिशा में ले जाने का प्रयास करते है| लेकिन पत्रकारों के मारे जाने में पत्रकार समाज भी कम दोषी नहीं है वह इसलिए कि पत्रकार ही अपने साथी के मारे जाने के बाद एक दो ज्ञापन धरना प्रदर्शन करने के बाद खामोश हो जाता है अब हमें जागने और अपने सोये हुये साथियों को जगाने कि ज़रुरत है हमें ज़रुरत है अपनी ताक़त को पहचानने कि हमें अब अपनी खामोशी को तोड़ने और ज़ुल्म और ज्यादती के खिलाफ लड़ना पड़ेगा तभी हम सुरक्षित रह पायेंगे और अगर हम इसी तरह खामोश तमाशबीन बने रहे तो इसी तरह से मारे जाते रहेंगे और अपने साथी की मौत पर दो मिनट का मौन रख कर स्रंधांजलि देने के साथ साथ खुद की दुखद खबरों से अखबारों में सुर्खिया बनते रहेंगे!
-लेखक " इमरान ज़हीर " मुरादाबाद में पत्रकार है साथ ही ब्लोगिंग और स्वतंत्र पत्रकारिता के छेत्र में सक्रीय है |
-लेखक " इमरान ज़हीर " मुरादाबाद में पत्रकार है साथ ही ब्लोगिंग और स्वतंत्र पत्रकारिता के छेत्र में सक्रीय है |

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