Tuesday, August 27, 2013

"84 कोस" के राजनीतिक मायने

" अयोध्या का मतलब आध्यात्मिक नगरी, भगवान राम की जन्मभूमि। लेकिन 1990 में विवादित ढ़ांचा विध्वंस ने अयोध्या के अध्यात्म को राजनीति के लिवास में लपेट दिया है। पिछले दो दशक से यूपी विधानसभा चुनावों में अयोध्या मुद्दे के जरिए राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दल हिन्दू-मुस्लिम समुदाय को गुमराह करने से बाज नहीं आते।"

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अयोध्या | हर साल होने वाली अयोध्या परिक्रमा में इस बार ऎसा क्या हो गया कि देश भर में हलचल मच गई है। दरअसल यह यात्रा इस बार अगले वर्ष प्रस्तावित लोकसभा चुनाव को प्रभावित करने जैसा कारण बन चुकी है। 


80 लोकसभा सीटों का उत्तरप्रदेश केन्द्र में सरकार बनाने के लिहाज से हर राजनीतिक दल की नजर में हैं। यात्रा का करीब दो माह विलम्ब से शुरू होना और इसके प्रभाव से वोट बैंक में सेंधमारी ही वह आशंका है, जिसने सारे राजनीतिक दिग्गजों को आपसी रस्साकशी के लिए मजबूर कर दिया है। देश के राजनीतिक दल इस परिक्रमा को किस तरीके से भुनाने की कोशिश कर रहे हैं, पेश है एक रिपोर्ट-
भाजपा: नरेन्द्र मोदी ने भाजपा चुनाव प्रचार अभियान का प्रमुख बनने के बाद अमित शाह को यूपी का चुनाव प्रभारी बनाया। यूपी में भाजपा को मजबूत करने की शुरूआत के संकेत खुद अमित ने यह कहकर दे दिए थे अयोध्या में राम मंदिर बनना चाहिए। 84 कोस की परिक्रमा पर यूपी सरकार ने रोक लगा दी, इस परिक्रमा के नाम पर देश की राजनीति में ध्रुवीकरण के बड़े संकेत दिखाई दे रहे हैं, इस पूरे घटनाक्रम से ऎसा लग रहा है यूपी में भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव में 40 से अधिक सीटें जीतने के इरादे से इस यात्रा को राजनीतिक रंग देने की पुरजोर कोशिश कर रही है। 

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक इस बात की आशंका जताई जा रही है हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण के साथ संघ,भाजपा और विहिप इस यात्रा को 2014 के चश्मे से देख रहे हैं।
सपा: सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव तीसरे मोर्चे के प्रधानमंत्री बनने की अटकलों को ध्यान में रखते हुए 84 कोस परिक्रमा के जरिए मुस्लिम वोट बैंक पर मजबूत पकड़ बनाने की पूरी कोशिश में लगे हैं। यात्रा पर रोक लगाकर परंपरागत वोट बैंक को इस बात के संदेश दिया जा रहा है। 80 सीट में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने के सपने को हकीकत में बदलने के लिए सपा हर मौके को भुनाने में लगी है।


कांग्रेस: केन्द्र में सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस इस पूरे मामले को नेपथ्य में बैठकर राजनीतिक नफा-नुकसान का आकलन कर रही है, पीएम मनमोहन सिंह, पार्टी के कर्णधार सोनिया गांधी और राहुल गांधी भी इस मुद्दे पर मौन हैं। विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद इस यात्रा को रोकने का ठीकरा यूपी की अखिलेश सरकार पर फोड़ रहे है, केन्द्रीय इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा इस पूरे घटनाक्रम को सपा-भाजपा की मिलीभगत कहकर पल्ला झाड़ रहे हैं। लेकिन कांग्रेस आगामी लोकसभा को ध्यान में रखते हुए यूपी के राजनीतिक अखाड़े में बड़ी जीत हासिल करने तैयारी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती, इसलिए हिन्दू वोट के साथ मुस्लिम वोट पर भी पकड़ मजबूत रखना चाहती है।

बसपा: बहुजन समाजवादी पार्टी का परंपरागत वोट बैंक दलित है, लेकिन स्पष्ट जनादेश के साथ 2007 में मायावती ने यूपी में चौथी बार मुख्यमंत्री बनकर सोशल इंजीनियरिंग की नई राजनीति के संकेत दे दिए थे, जिसमें हिन्दू, मुस्लिम वोट के बड़े हिस्से को बसपा अपनी तरफ मोड़ने में कामयाब रही। अखिलेश सरकार द्वारा विहिप की 84 कोस परिक्रमा पर रोक लगाने के मामले पर मायावती बयान देने से कन्नी काट रही हैं, इस रवैये से ऎसा लगता है कि लोकसभा चुनाव के दौरान मायावती के सोशल इंजीनिरिंग के सांचे में ढलने से कोई तबका मना कर दे, इस आशंका से बसपा सुप्रीमो कोई जोखिम उठाना नहीं चाहती।
वोट की राजनीति,अयोध्या परेशान!
अयोध्या का मतलब आध्यात्मिक नगरी, भगवान राम की जन्मभूमि। लेकिन 1990 में विवादित ढ़ांचा विध्वंस ने अयोध्या के अध्यात्म को राजनीति के लिवास में लपेट दिया है। पिछले दो दशक से यूपी विधानसभा चुनावों में अयोध्या मुद्दे के जरिए राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दल हिन्दू-मुस्लिम समुदाय को गुमराह करने से बाज नहीं आते।

बुनियादी विकास को ठेंगा दिखाकर अयोध्या के नाम पर देश की राजनीति को गुमराह करने में पारि्टयों को शर्म भले ही नहीं आती, लेकिन अयोध्यावासी इस पूरे घटनाक्रम से लगातार परेशान रहते हैं, यहां के लोगों को पिछले 20 वर्ष से अमन-चैन नसीब नहीं है और 84 कोस परिक्रमा को राजनेताओं ने वोट बैंक में लपेटकर अयोध्या को फिर खौफ के साए में जीने को मजबूर कर दिया।


साभार : http://www.patrika.com/  

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