Saturday, August 31, 2013

तकनीकी वस्त्र उद्योग में विकास की व्यापक संभावनाएं -केंद्रीय कपड़ा राज्य मंत्री


मुम्बई केंद्रीय कपड़ा राज्य मंत्री पनाबाका लक्ष्मी ने आज मुम्बई में एक संक्षिप्त समारोह में ‘‘टेक्नोटैक्स 2014: अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी और सम्मेलन’’ का शुभारंभ किया। टेक्नोटैक्स-2014 का आयोजन मुम्बई प्रदर्शनी केंद्र, गोरेगांव में 22-22 मार्च, 2014 के दौरान किया जाएगा। इस अवसर पर श्रीमती लक्ष्मी ने कहा कि भारत में तकनीकी वस्त्र उद्योग अभी प्रारंभिक अवस्था में है, लेकिन इसके विकास की व्यापक संभावनाएं हैं। उन्होंने कहा कि ‘‘प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय विनिर्माण समिति ने भी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में तकनीकी वस्त्र क्षेत्र के महत्व और उत्पादन और निर्यात बढ़ाने में इसके योगदान को स्वीकार किया है।


कपड़ा मंत्री ने कहा कि भारत में टेक्नीकल टेक्सटाइल के बाजार का तेजी से विकास हुआ है और यह 2007-08 के 42,000 करोड़ रुपये से बढ़ कर 2013-14 में 91,236 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। इसमें करीब 11 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि हुई। उन्होंने कहा कि समुचित नीति समर्थन, प्रोत्साहन प्रयासों और मानकीकरण एवं विनियमन के चलते उम्मीद की जा रही है कि 2016-17 तक यह क्षेत्र 1.58 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच जाएगा। 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान हर वर्ष इस क्षेत्र में 20 प्रतिशत वृद्धिदर का अनुमान लगाया जा रहा है। टेक्नीकल टेक्सटाइल के अंतर्गत ऐसी सामग्री और उत्पाद शामिल हैं जिनका इस्तेमाल तकनीकी कार्य निष्पादन और व्यावहारिक संपत्तियों के लिए किया जाता है। इनमें टायर का धागा, फैब्रिक्स, एयरबैग्स, औद्योगिक टेक्सटाइल, फर्नीचर लाइनिंग, तम्बू, अग्निशमन उपकरण, बुलेटप्रूफ जैकेट, पैराशूट आदि शामिल हैं। 

रंजन सोढ़ी को राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार, विराट कोहली होंगे अर्जुन अवार्ड से सम्मानित

- जेड.एन.आई.न्यूज़ नेटवर्क 

नई दिल्ली : भारत के राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी 31 अगस्त 2013 को राष्ट्रपति भवन नई दिल्ली में विशेष रुप से आयोजित एक समारोह में राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार, द्रोणाचार्य पुरस्कार, अर्जुन अवा्र्ड, ध्यान चंद पुरस्कार और राष्ट्रीय खेल प्रोत्साहन पुरस्कार प्रदान करेंगे। यह पुरस्कार समारोह सांय 6:00 बजे होगा। राष्ट्रीय खेल पुरस्कार, खेलों में श्रेष्ठता को पुरस्कृत करने व मान्यता देने के लिए प्रत्येक वर्ष दिये जा रहे हैं। राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार प्राप्त करने वाले को पदक और प्रशस्ति पत्र के अतिरिक्त 7.5 लाख की नकद राशि भी प्राप्त होगी। अर्जुन, द्रोणाचार्य, और ध्यान चंद पुरस्कार प्राप्त करने वाले को प्रतिमा प्रशस्ति पत्र और लाख की नकद राशि प्राप्त होगी। राष्ट्रीय खेल प्रोत्साहन पुरस्कार प्राप्त करने वाले को एक ट्रॉफी दी भी जाएगी। इस समारोह में रंजन सोढ़ी को राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया जायेगा | वहीँ विराट कोहली समेत 15 लोगो को अर्जुन अवार्ड दिया जायेगा | द्रोणाचार्य पुरस्कार से पूर्णिमा महतो सहित 5 लोगो सम्मानित किया जायेगा | इसी क्रम में ध्यान चंद पुरस्कार से सय्यद अली समेत चार लोग सम्मानित होंगे | 

Friday, August 30, 2013

बिजली को लेकर उबल रहा शहर, करुला में लोकल फाल्ट से 12 घन्टे से बिजली की आपूर्ति ठप्प

कर्मचारी लोकल फाल्ट तक को सही कर पाने में नाकाम रहे है जिससे इनके कार्य प्रणाली पर सवाल उठने लगा है | 

- जेड.एन.आई.न्यूज़ नेटवर्क 

मुरादाबाद : शहर में पिछले कई दिनों से बिजली को लेकर हाहाकार मचा हुआ है | कर्मचारी लोकल फाल्ट तक को सही कर पाने में नाकाम रहे है जिससे इनके कार्य प्रणाली पर सवाल उठने लगा है | अघोषित बिजली कटौती से बिलबिलाये लोगो ने गुरहट्टी बिजली घर में तोड़ फोड़ शुरू कर दी | लोगो की भारी भीड़ देख कर्मचारी बिजली घर छोड़ के भाग खड़े हुए | करूला छेत्र में तो हद हो गई 29 अगस्त की रात 10:30 बजे बिजली गुल हुई तो दुसरे दिन 12 घंटे के बाद भी सुचारू नहीं की जा सकी | जिससे शहर के करुला इलाके में लोग बिजली, पानी और उमस भरी गर्मी से बेहाल है | लोगो के इन्वर्टर ठप्प हो गए | बच्चे पानी के लिए तरस रहे है |

सीतापुरी सब स्टेशन के कर्मचारियों के मुताबिक सब स्टेशन में ही लगे ट्रांसफार्मर में लगी पीडी ख़राब हो जाने के कारण बिजली की आपूर्ति नहीं हो पा रही है | करुला के पीर का बाज़ार निवासी गुड्डू का कहना है कि इस इलाके में रोज़ यही हाल रहता है | वहीँ के रहने वाले अबरार अंसारी और मशकूर अहमद के मुताबिक बिजली घर पे फ़ोन करने पर फ़ोन नहीं उठाया जाता जबकि कर्मचारियों के फ़ोन न उठाने की शिकायत वहां के अधिकारी से भी की जा चुकी है | 

Thursday, August 29, 2013

अब एड्स का पता लगाने के लि‍ए खर्च करने होगे सिर्फ 7.50 रूपये

- जेड.एन.आई.न्यूज़ नेटवर्क 

नई दिल्ली: भारतीय वैज्ञानि‍कों द्वारा रेपि‍ड और एलीसा फॉर्मेट में स्‍वदेशी रूप से एड्स के लि‍ए कि‍टों का वि‍कास कि‍या गया है, जि‍नका फि‍लहाल नि‍र्माण कि‍या जा रहा है और इन्‍हें वि‍भि‍न्‍न कंपनि‍यों अर्थात मैसर्स जे. मि‍त्रा एंड कंपनी लि‍मि‍टेड, नई दि‍ल्‍ली, मैसर्स स्‍पॉन डायग्नोस्‍टि‍क लि‍मि‍टेड, सूरत , मैसर्स भट्ट बायोटेक इंडि‍या(प्रा0) लि‍मि‍टेड, बंगलौर और मेसर्स क्‍वालप्रो डायग्‍नोस्‍टि‍क, गोवा द्वारा वाणि‍ज्‍यि‍क रूप से उपलब्‍ध कराया जा रहा है। वि‍देशी कि‍ट जो 15/- रुपए से 65/- रुपए प्रति‍ परीक्षण मूल्‍य की रेंज में उपलब्‍ध हैं, की तुलना में स्‍वदेशी कि‍टें फि‍लहाल 7.50/- रुपए से 45/- रुपए प्रति‍ परीक्षण के मूल्‍य की रेंज में उपलब्‍ध हैं। यह जानकारी आज लोकसभा में वि‍ज्ञान और प्रौद्योगि‍की तथा पृथ्‍वी वि‍ज्ञान मंत्रि श्री एस. जयपाल रेड्डी ने दी। 

उत्‍तर प्रदेश में मुस्‍लि‍म महि‍लाओं सहि‍त पूरे मुस्लिम समुदाय में गरीबी के मामले सबसे अधि‍क -नि‍नोंग एरिंग

- जेड.एन.आई.न्यूज़ नेटवर्क 

नई दिल्ली:  बहराइच, देवरि‍या और गोरखपुर जि‍लों सहि‍त पूरे उत्‍तर प्रदेश में सामाजि‍क आर्थि‍क कारणों की वजह से मुस्‍लि‍म महि‍लाओं में साक्षरता दर राष्‍ट्रीय स्‍तर पर महिलाओं की साक्षरता दर से कम है। उत्‍तर प्रदेश में मुस्‍लि‍म महि‍लाओं सहि‍त पूरे मुस्लिम समुदाय में गरीबी के मामले अधि‍क है। यह जानकारी आज लोकसभा में अल्‍पसंख्‍यक मामलों के राज्‍य मंत्री नि‍नोंग एरिंग ने दी। 

अल्‍पसंख्‍यक मामलों के मंत्रालय ने अल्‍पसंख्‍यक महि‍लाओं सहि‍त अल्‍पसंख्‍यकों के वि‍कास के लि‍ए एक बहु-आयामी रणनीति‍ अपनाई है। अल्‍पसंख्‍यकों को शैक्षि‍क रूप से मजबूत करने के लि‍ए मैट्रि‍क से पहले, मैट्रि‍क पास करने के बाद और मेधा-सह-साधन छात्रवृत्‍ति‍यां दी जाती है। इन योजनाओं के तहत कम से कम 30 फीसदी सीटें छात्राओं के लि‍ए आरक्षि‍त है। इसके अलावा मंत्रालय के अधीन स्‍वायत संस्‍था मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन 11वीं और 12वींद कक्षा की अल्‍पसंख्‍यक छात्राओं को खास तौर पर छात्रवृत्‍ति‍यां प्रदान करती है। यही नहीं, प्रधानमंत्री के 15 बि‍न्‍दु कार्यक्रम और अल्‍पसंख्‍यकों के लि‍ए बहु-आयामी वि‍कास कार्यक्रम के तहत स्‍कूलों, छात्राओं के लि‍ए हॉस्‍टल इत्‍यादि‍, औद्योगि‍क प्रशि‍क्षण संस्‍थानों, पोलि‍टेक्‍नि‍क इत्‍यादि‍ खोले जा रहे हैं। इसके अलावा अल्‍पसंख्‍यक महिलाओं में नेतृत्‍व क्षमता के विकास के लिए नयी रोशनी योजना 2012-13 से ही चलाई जा रही है, जिसके तहत सरकारी व्‍यवस्‍था, बैंकों और अन्‍य संस्‍थानों के साथ सभी स्‍तर पर व्‍यवहारकुशल होने के लिए जरूरी जानकारी और साधन मुहैया कराये जा रहे हैं। लघु वित्‍त की जरूरतें पूरी करने के लिए राष्‍ट्रीय अल्‍पसंख्‍यक विकास एवं वित्‍त निगम द्वारा एक खास योजना महिला समृद्धि योजना चलाई जा रही है। हाल ही में अल्‍पसंख्‍यकों की क्षमता विकास के लिए मंत्रालय ने सीखो और कमाओ नाम से एक योजना बनाई है, जिसमें 30 फीसदी सीटें अल्‍पसंख्‍यक महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। 

समाज में कोई भी पत्रकार सुरक्षित क्यों नहीं ?

" समाज में फैली बुराइयों  को मिटाने और भ्रस्टाचार को उखाड़ फेंकने वाला ही इन पुलिस वालो  की गोली का निशाना बन जाता है!  या फिर किसी और के द्वारा ऐसे पत्रकारों को गोली मार दी जाती है, जो समाज से बुराई को जड़ से ख़त्म  करने के लिए अपनी ज़िन्दगी  कि परवाह किये बगैर जी तोड़ कोशिश करता है " 

- इमरान ज़हीर 

कितने दुःख की बात है की आज समाज को आइना दिखने वाले समाज के सजग प्रहरी और कलम के सिपाहियों को मौत के घात उतार दिया जा रहा है या फिर उनपर जानलेवा हमला किया जा रहा है | समाज में कलम के सिपाही लोगो को सही रास्ता दिखाने का काम करते है और समाज में फैली बुराइयों को आमजन तक पंहुचा कर अच्छे बुरे की पहचान कराते है, लेकिन आज उनकी मौत की खबर हो या उनपर जानलेवा हमला हो रहा हो ऐसी खबरे आये दिन अखबारों/मीडिया में सुर्खियाँ बनती नज़र आती है| 

पिछले दिनों काफी चर्चा में रहे एक नक्सली नेता के साथ  एक पत्रकार को भी  गोली का निशाना बना  कर पुलिस ने अपनी कायरता  का परिचय दिया था| इस तरह कलम के सिपाही को मौत के घात उतारने वालो की हरकत और मंशा सिर्फ एक नज़र आती है की इन कथित पुलिस वालो ने कही न कही से अपनी दुश्मनी एक पत्रकार से भी निकाली है जो इन भ्रस्टाचार के दलदल में डुबकियाँ लगा रहे बेलगाम पुलिस वालो के गलत कारनामों को उजागर कर समाज  के सामने ला कर खड़ा करता है| 

अभी हाल ही में गाजीपुर जिले में दैनिक आज के फोटोग्राफर गुलाब राय पर फोटो खीचे जाने की वजह से हमला बोल दिया गया| आइये  मीडिया में प्रकाशित कुछ हेडिंग पर नज़र डालते है " फोटोग्राफर पर हमला : आरोपियों की गिरफ्तारी में निष्क्रियता दिखा रही पुलिस" ,  "प्रेस क्‍लब अध्‍यक्ष के साथ मारपीट, तीन हिरासत में",  "एटा में बेलगाम पुलिस ने की दो फोटोग्राफरों की पिटाई" ,  "बीबीसी के तीन पत्रकारों को बंधक बनाकर पीटा गया" ,  "रिपोर्टर नरेश कुमार सहगल पर हमले के मामले में कोई कार्यवाही नहीं" , "हजारीबाग में तीन मीडियाकर्मियों से मारपीट, कैमरे छीने गए",  "बसपा विधायक के गुर्गों ने चार पत्रकारों को पेड़ से बांधकर पीटा" ,  "चैनल के एडिटर को बिल्‍डर ने दी जान से मारने की धमकी" ,  "सीबीआई करेगी पत्रकार सुशील पाठक हत्‍याकांड की जांच" ,  ऐसी ही सैकड़ो दुखद भरे शीर्षक से खबरे ना जाने कितने अखबारों और चैनलों में आये दिन सुर्खियाँ बनती नज़र आती है| क्या ऐसे में बुराइयों से लड़ने वाले इन कलम के सिपाहियों को कलम चलाना छोड़ देना चाहिए ? आज इस समाज में कलम के सिपाहियों की हत्या की जा रही है क्यों? क्या सिर्फ इस कारण कि वह समाज में फैली बुराईयों  को जड़ से ख़त्म  करने की कोशिश करता है इसलिए? लोगो को उनके अधिकार से परिचय  कराता है इसलिए? और समाज में फैली बुराइयों  को मिटाने और भ्रस्टाचार को उखाड़ फेंकने वाला ही इन पुलिस वालो  की गोली का निशाना बन जाता है!  या फिर किसी और के द्वारा ऐसे पत्रकारों को गोली मार दी जाती है, जो समाज से बुराई को जड़ से ख़त्म  करने के लिए अपनी ज़िन्दगी  कि परवाह किये बगैर जी तोड़ कोशिश करता है| 

ऐसा कब तक चलता रहेगा  कब तक बुराइयों से लड़ने वाले मौत के मुह में जाते रहेंगे?  आज इस भ्रष्ट समाज में कोई भी पत्रकार सुरक्षित क्यों नहीं है? उनकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी लेने वाले लोग ही  उनकी हत्या क्यों कर रहे है? समाज के इस सजग प्रहरी की सुरक्षा के प्रति सरकार संवेदनशील क्यों नहीं हो रही  है? ऐसे तमाम सवाल हर पत्रकार के दिमाग में गूँज रहे है जो इस समाज में फैली तमाम बुराइयों को जड़ से ख़त्म  करने और भ्रष्ट लोगो को बेनकाब करने के लिये जोखिम उठाने के साथ साथ समाज को एक सही दिशा में ले जाने का प्रयास करते है| लेकिन पत्रकारों के मारे जाने में पत्रकार समाज भी कम दोषी नहीं है वह इसलिए कि पत्रकार ही अपने साथी के मारे जाने के बाद एक दो ज्ञापन धरना प्रदर्शन करने के बाद खामोश हो जाता है अब हमें जागने और अपने सोये हुये साथियों को जगाने कि ज़रुरत है हमें ज़रुरत है अपनी ताक़त को पहचानने कि हमें अब अपनी खामोशी को तोड़ने और ज़ुल्म और ज्यादती के खिलाफ लड़ना पड़ेगा तभी हम सुरक्षित रह पायेंगे और अगर हम इसी तरह खामोश तमाशबीन बने रहे तो इसी तरह से मारे जाते रहेंगे और अपने साथी  की  मौत पर दो मिनट  का मौन रख कर स्रंधांजलि देने के साथ साथ खुद की दुखद खबरों से अखबारों में सुर्खिया बनते रहेंगे! 

-लेखक " इमरान ज़हीर " मुरादाबाद में पत्रकार है साथ ही ब्लोगिंग और स्वतंत्र पत्रकारिता के छेत्र  में सक्रीय है |

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सेवासदन के जीर्णोद्वार की घोषणा

लखनऊ, उत्तर प्रदेश :  प्रदेश के मुख्य मंत्री अखिलेश यादव ने आज यहाँ रिवर बैकं कॉलोनी स्थित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सेवा सदन  स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से मुलाकात की और उनकी समस्याओं को सुना | इस मौके पर उन्होंने महात्मा गाँधी की प्रतिमा पुष्पांजलि अर्पित करने के साथ इस परिसर में वृक्षारोपण भी किया |
मुख्यमंत्री ने उत्तर प्रदेश स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सेवासदन के जीर्णोद्वार की घोषणा करते हुए कहा कि इस संस्था  ने इस भवन के जीर्णोद्वार पर लगभग पचास लाख रूपये खर्च होने का आंकलन उपलब्ध कराया है | उन्होंने आगे कहा की देश की आजादी के लिए संघर्ष करने वाले स्वतंत्रा संग्राम सेनानियों के लिए यह भवन बनाया गया है | इसलिए इसकी मरम्मत का कार्य तत्परता से राज्य सरकार कराएगी | उन्होंने मिडिया से अनौपचारिक वार्ता करते हुए कहा की जन्माष्टमी को मिल-जुल कर मनाया जाना चाहिए क्युकी त्य्हार समाज में सदभावना तथा भाई चारा बढ़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है |
इस अवसर पर कारगर मंत्री राजेंद्र चौधरी , पूर्व सांसद भगौती सिंह , नरेश  कुशवाहा सहित संस्था के पदाधिकारी एवं जनप्रतिनिधि तथा सचिव नागरिक सुरक्षा एवं राजनैतिक पेंशन चंद्रभानु आदि उपस्थित थे \

Wednesday, August 28, 2013

रेलगाड़ियों के 1400 डिब्बों में की गई जैव-शौचालयों की व्यवस्था

- जेड.एन.आई.न्यूज़ नेटवर्क 

नई दिल्ली : यात्रियों को स्वच्छ पर्यावरण प्रदान करने के प्रति अपनी वचनबद्धता का निर्वाह करते हुए भारतीय रेलवे ने विभिन्न रेलगाड़ियों के 1400 डिब्बों में 3800 जैव शौचालयों की व्यवस्था की है। चालू वित्त वर्ष के पहले चार महीनों में जैव शौचालयों की व्यवस्था के कार्य में तेजी से प्रगति हुई है। इस दौरान जितनी संख्या में डिब्बों में जैव शौचालाय चालू किए गए हैं, उतने पिछले तीन वर्ष में चालू किए गए थे। यह प्रयोग सबसे पहले जनवरी, 2011 में ग्वालियर-वाराणसी बुंदेलखंड एक्सप्रेस में किया गया था। इस्तेमालकर्ताओं से अच्छी फीडबैक मिलने के बाद यात्री डिब्बों में जैव शौचालयों के रख रखाव के काम में तेजी लाई गई। 

जैव शौचालयों की विशेषता यह है कि वे पर्यावरण अनुकूल हैं और उनमें लागत कम आती है।इससे संबंधित सशक्त प्रौद्योगिकी का विकास भारतीय रेलवे और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन -डीआरडीओ ने मिल कर किया है। यह व्यवस्था विश्वभर की रेलवे प्रणालियों में अपने तरह की पहली व्यवस्था है। जैव शौचालयों के जाइन में एक खास तरह का बैक्टिरिया इस्तेमाल किया जाता है जिसे डीआरडीओ द्वारा अंटार्कटिका से ध्यानपूर्वक एकत्र किया गया और विश्लेषण के बाद इस्तेमाल के उपयुक्त समझा गया। डीआरडीओ ने विषम जलवायु स्थितियों में इस प्रणाली की प्रभावकारिता पर परीक्षण के बाद इसे सफल घोषित किया है। 

बिन मारे बैरी मरै, या सुख कहाँ समाय

बकौल बुंदेलखंड विशेषज्ञ राधाकृष्ण बुंदेली, "यहां तो कन्या को प्रणाम करने की परम्परा है। हम लड़कियों का बड़ा आदर करते हैं " ... इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी, जिसे प्रणाम करते हैं उसे ही नहीं चाहते  !
नसीरुद्दीन हैदर खाँ
जितना सुख खेत में खड़ी ईख के बिकने से होता है, वैसा ही सुख जनमते बेटी के मरने से और अगर शादी से पहले बेटी मर गयी तो क्या कहने? यह अपनी तन से पैदा हुई ‘तनया’ के बारे में बुंदेलखंड के एक हिस्‍से के लोगों की राय है। बेटा है तो जीवन तरेगा … और अगर बेटियाँ हो गईं तो माँ का बुरा हाल। उनका होना कितना दु:ख का सबब है और चले जाना सुख का। इसे बुंदेलों की सरजमीं पर आसानी से देखा/ समझा और महसूस किया जा सकता है। इस होने न होने में लोगों का नजरिया और सामाजिक सच्चाई भी सामने आती है। … ऐसी सोच वाले समाज में भ्रूण का लिंग परीक्षण बढ़ना स्वाभाविक ही है।
बेटवा के हाथ तरै का होत हवै- बेटा जरूरी क्यूँ, कर्वी (चित्रकूट) के कसहाई ग्राम सभा के एक गांव की उर्मिला का बयान है, ‘बेटियाँ हैं। लोग ताना देते हैं, मरेगी तो तरेगी नहीं। वंश नाश हो जायेगा।’ राजुल इसमें जोड़ती है, ‘बेटवा के हाथ से जीवन तर जात हवै, नीक हो या निकाम आखिर वंश तो चलावत है!’ बांदा के तिंदवारी की पुष्पा का भी मानना है, ‘बेटवा के हाथ तरै का होत हवै।’
पुत्र न हो इससे बड़ा सोग नहीं- ‘समाज में मान्यता नहीं मिलती। कहते हैं औलाद नहीं हैं’- यह जनाब दो बेटियों के बाप खेती करने वाले रामसुमेर हैं। (मानो जैसे बेटी औलाद नहीं होती।) राधे लाल तो यहाँ तक बोल डालते हैं, ‘पुत्र न हो इससे बड़ा सोग नहीं। ऋण से बड़ा रोग नहीं।’
अगर बेटी हो गई तो… तो फिर माँ की जिंदगी ताने सुनते हुए बीतनी है। सेमरा (बांदा) की एक औरत कहती है, दिल से कभी नहीं निकलता की बेटी हो। बेटी हो गई तो माँ को पेट भर खाना नहीं मिलता।
कहीं फिर बेटी हो गई तो- बांदा की शहनाज का दर्द कुछ और है, ‘बच्ची को ठीक से दूध भी नहीं पिलाने देते। कहते हैं, रोने दो।’ सुनीता कुछ और जोड़ती है, ‘लड़की पैदा हुई तो घर में ऐसा माहौल हो जाता है जैसे कोई मर गया है। सब सोचते हैं लड़की मर जाए तो अच्छा है।’ बेटी होने का खौफ कोई आबादी के रामप्रीत से पूछे उसके तीन बेटियाँ है। गर्भवती है। डर रही है कहीं फिर बेटी हो गयी तो?
महतारिन की कोख में जाई- उन औरतों का हाल और बुरा होता है जिनके बहनें ज्यादा होती हैं। कर्वी की रेनू की चार बहनें हैं। … जब वह गर्भवती हुई तो ससुराल वाले यही कहा करते थे, ‘इसकी माँ का वंश बेटियों वाला है तो इसका भी यही होगा। महतारिन की कोख में जाई।’ ऊषा को भी ताने मिलते हैं, ‘जउन तना महतारी निखरी रही हवै वहिनतना बिटियव होइंग हवै!’ और जब फूलमती को अपनी माँ की तरह बेटी ही हुई तो उसे सुनना पड़ा, ‘महतारी के कोख मा चली गे, यहूके बिटियै-बिटियै होइहै!’
… या सुख कहाँ समाय- बेटियों के बारे में वाकई समाज इतना क्रूर है या फिर कोई करुण कथा- तय कर पाना कठिन है। बेटियों का न होने का उत्सव, यह सोचना भी सभ्य समाज में डरावना लगता है। पर इलाके में प्रचलित कहावतों का क्या करेंगे। उर्मिला के मुताबिक लोग बड़े उत्साह से कहते हैं, ‘बिन ब्याही बिटिया मरै, या सुख कहाँ समाय।’ तो एक संगठन में काम करने वाले जितेन्‍द्र इससे भी भयावह दो लाइन सुनाते हैं, ‘जनमत बिटिया जो मरै, ठाड़ी ऊख बिकाय। बिन मारे बैरी मरै, या सुख कहाँ समाय॥’
-जाने माने लेखक/वरिष्ठ पत्रकार  "नसीरुद्दीन हैदर खाँ" की वेबसाइट "जेंडर जिहाद" से साभार |

Tuesday, August 27, 2013

जन्माष्टमी बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव -प्रधानमंत्री


- जेड.एन.आई.न्यूज़ नेटवर्क 

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने जन्माष्टमी के मौके पर देशवासियों को बधाई दी है। प्रधानमंत्री ने बधाई संदेश में कहा कि जन्माष्टमी बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव है। उन्होंने कहा कि इस मौके पर हमें भगवान श्रीकृष्ण का वह सनातन संदेश स्मरण करना चाहिए जिसमें फल की चिंता किए बगैर अपना कर्तव्य निभाने की बात कही गई है। प्रधानमंत्री ने लोगों को जीवन में खुशहाली, शांति और विकास की शुभकामनाएं दी।

"84 कोस" के राजनीतिक मायने

" अयोध्या का मतलब आध्यात्मिक नगरी, भगवान राम की जन्मभूमि। लेकिन 1990 में विवादित ढ़ांचा विध्वंस ने अयोध्या के अध्यात्म को राजनीति के लिवास में लपेट दिया है। पिछले दो दशक से यूपी विधानसभा चुनावों में अयोध्या मुद्दे के जरिए राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दल हिन्दू-मुस्लिम समुदाय को गुमराह करने से बाज नहीं आते।"

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अयोध्या | हर साल होने वाली अयोध्या परिक्रमा में इस बार ऎसा क्या हो गया कि देश भर में हलचल मच गई है। दरअसल यह यात्रा इस बार अगले वर्ष प्रस्तावित लोकसभा चुनाव को प्रभावित करने जैसा कारण बन चुकी है। 


80 लोकसभा सीटों का उत्तरप्रदेश केन्द्र में सरकार बनाने के लिहाज से हर राजनीतिक दल की नजर में हैं। यात्रा का करीब दो माह विलम्ब से शुरू होना और इसके प्रभाव से वोट बैंक में सेंधमारी ही वह आशंका है, जिसने सारे राजनीतिक दिग्गजों को आपसी रस्साकशी के लिए मजबूर कर दिया है। देश के राजनीतिक दल इस परिक्रमा को किस तरीके से भुनाने की कोशिश कर रहे हैं, पेश है एक रिपोर्ट-
भाजपा: नरेन्द्र मोदी ने भाजपा चुनाव प्रचार अभियान का प्रमुख बनने के बाद अमित शाह को यूपी का चुनाव प्रभारी बनाया। यूपी में भाजपा को मजबूत करने की शुरूआत के संकेत खुद अमित ने यह कहकर दे दिए थे अयोध्या में राम मंदिर बनना चाहिए। 84 कोस की परिक्रमा पर यूपी सरकार ने रोक लगा दी, इस परिक्रमा के नाम पर देश की राजनीति में ध्रुवीकरण के बड़े संकेत दिखाई दे रहे हैं, इस पूरे घटनाक्रम से ऎसा लग रहा है यूपी में भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव में 40 से अधिक सीटें जीतने के इरादे से इस यात्रा को राजनीतिक रंग देने की पुरजोर कोशिश कर रही है। 

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक इस बात की आशंका जताई जा रही है हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण के साथ संघ,भाजपा और विहिप इस यात्रा को 2014 के चश्मे से देख रहे हैं।
सपा: सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव तीसरे मोर्चे के प्रधानमंत्री बनने की अटकलों को ध्यान में रखते हुए 84 कोस परिक्रमा के जरिए मुस्लिम वोट बैंक पर मजबूत पकड़ बनाने की पूरी कोशिश में लगे हैं। यात्रा पर रोक लगाकर परंपरागत वोट बैंक को इस बात के संदेश दिया जा रहा है। 80 सीट में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने के सपने को हकीकत में बदलने के लिए सपा हर मौके को भुनाने में लगी है।


कांग्रेस: केन्द्र में सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस इस पूरे मामले को नेपथ्य में बैठकर राजनीतिक नफा-नुकसान का आकलन कर रही है, पीएम मनमोहन सिंह, पार्टी के कर्णधार सोनिया गांधी और राहुल गांधी भी इस मुद्दे पर मौन हैं। विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद इस यात्रा को रोकने का ठीकरा यूपी की अखिलेश सरकार पर फोड़ रहे है, केन्द्रीय इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा इस पूरे घटनाक्रम को सपा-भाजपा की मिलीभगत कहकर पल्ला झाड़ रहे हैं। लेकिन कांग्रेस आगामी लोकसभा को ध्यान में रखते हुए यूपी के राजनीतिक अखाड़े में बड़ी जीत हासिल करने तैयारी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती, इसलिए हिन्दू वोट के साथ मुस्लिम वोट पर भी पकड़ मजबूत रखना चाहती है।

बसपा: बहुजन समाजवादी पार्टी का परंपरागत वोट बैंक दलित है, लेकिन स्पष्ट जनादेश के साथ 2007 में मायावती ने यूपी में चौथी बार मुख्यमंत्री बनकर सोशल इंजीनियरिंग की नई राजनीति के संकेत दे दिए थे, जिसमें हिन्दू, मुस्लिम वोट के बड़े हिस्से को बसपा अपनी तरफ मोड़ने में कामयाब रही। अखिलेश सरकार द्वारा विहिप की 84 कोस परिक्रमा पर रोक लगाने के मामले पर मायावती बयान देने से कन्नी काट रही हैं, इस रवैये से ऎसा लगता है कि लोकसभा चुनाव के दौरान मायावती के सोशल इंजीनिरिंग के सांचे में ढलने से कोई तबका मना कर दे, इस आशंका से बसपा सुप्रीमो कोई जोखिम उठाना नहीं चाहती।
वोट की राजनीति,अयोध्या परेशान!
अयोध्या का मतलब आध्यात्मिक नगरी, भगवान राम की जन्मभूमि। लेकिन 1990 में विवादित ढ़ांचा विध्वंस ने अयोध्या के अध्यात्म को राजनीति के लिवास में लपेट दिया है। पिछले दो दशक से यूपी विधानसभा चुनावों में अयोध्या मुद्दे के जरिए राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दल हिन्दू-मुस्लिम समुदाय को गुमराह करने से बाज नहीं आते।

बुनियादी विकास को ठेंगा दिखाकर अयोध्या के नाम पर देश की राजनीति को गुमराह करने में पारि्टयों को शर्म भले ही नहीं आती, लेकिन अयोध्यावासी इस पूरे घटनाक्रम से लगातार परेशान रहते हैं, यहां के लोगों को पिछले 20 वर्ष से अमन-चैन नसीब नहीं है और 84 कोस परिक्रमा को राजनेताओं ने वोट बैंक में लपेटकर अयोध्या को फिर खौफ के साए में जीने को मजबूर कर दिया।


साभार : http://www.patrika.com/  

हर बार आम आदमी ही क्यों मरता है ?

"मद्रास कैफे की कहानी भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में 80 के दशक के मध्य में शुरू हुए गृह  युद्ध और उसमें भारत की भूमिका पर केंद्रित है। करीब 27 सालों तक चले इस नरसंहार में हजारों निर्दोष तमिल मारे गए। इस दौरान भारतीय सेना के 1200 से अधिक जवानों को भी पड़ोसी देश में अपनी जान गंवानी पड़ी थी "

- संदीप पाण्डेय


र्चस्व की जंग में आखिर क्यों हर बार निर्दोषों की ही जान जाती है। चाहे वह मिस्र हो, सीरिया हो, पाकिस्तान या अफगानिस्तान हो या फिर श्रीलंका या खुद भारत ही। कोई भी मुद्दा हो, कोई भी आंदोलन छिड़े, आखिर में मारा आम आदमी ही जाता है।’ कुछ ऐसे ही संदेश को लेकर इस शुक्रवार को रिलीज हुई है सुजीत सरकार की फिल्म ‘मद्रास कैफे’। फिल्म के पहले सीन से ही आपको अंदाजा हो जाएगा कि ये फिल्म भारतीय इतिहास के एक खास अध्याय पर आधारित  है। 

मद्रास कैफे की कहानी भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में 80 के दशक के मध्य में शुरू हुए गृह  युद्ध और उसमें भारत की भूमिका पर केंद्रित है। करीब 27 सालों तक चले इस नरसंहार में हजारों निर्दोष तमिल मारे गए। इस दौरान भारतीय सेना के 1200 से अधिक जवानों को भी पड़ोसी देश में अपनी जान गंवानी पड़ी। फिल्म में जॉन अब्राहम (विक्रम सिंह) ने एक सैन्य अधिकारी का रोल किया है, जिन्हें भारतीय खुफिया एजेंसी ‘रॉ’ द्वारा श्रीलंका में तमिल विद्रोही संगठन ‘एलटीएफ’ के गढ़ माने जाने वाले जाफना में एक गुप्त आपरेशन के लिए भेजा जाता है। विक्रम सिंह को जाफना इस वादे के साथ भेजा जाता है कि उन्हें भारत सरकार की ओर से इस संबंध में हर तरह की मदद दी जाएगी, लेकिन सच्चाई कुछ और होती है। जाफना में विक्रम सिंह की जंग सिर्फ एलटीएफ चीफ भास्करन से ही नहीं बल्कि ऐसे अपनों से भी थी, जो दुश्मन से मिले होते हैं। ऐसे में विक्रम सिंह की मदद एक विदेशी पत्रकार जया साहनी (नरगिस फाखरी) करती है। जया और खुफिया एजेंसियों से मिली कुछ जानकारियों के जरिए विक्रम एलटीएफ और कुछ विदेशी ताकतों द्वारा पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश का खुलासा करता है। हालांकि लाख कोशिशों के बाद भी वह इस साजिश को विफल करने में नाकाम रहता है।

‘मद्रास कैफे’ पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या से प्रभावित दिखती है। ऐसा माना जाता है कि 80

के दशक में श्रीलंका में तमिल लोगों पर अत्याचार के खिलाफ भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ ने प्रभाकरन(फिल्म में भास्करन) के नेतृत्व में श्रीलंकाई तमिलों को छापामार युद्ध का प्रशिक्षण दिया था ताकि वे अपनी रक्षा कर सकें। लेकिन दशक के अंत में जब यह गृह युद्ध अपने चरम पर पहुंच गया तो तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने श्रीलंका की ओर से मदद मांगे जाने पर वहां शांति सेना भेजने का फैसला किया। यह फैसला एलटीटीई (फिल्म में एलटीएफ) चीफ प्रभाकरन के विरोध के बाद भी लिया गया। तमिल विद्रोहियों के संगठन एलटीटीई के नेटवर्क को भारतीय शांति सेना ने तहस नहस कर दिया, जिससे बौखलाए प्रभाकरन ने विदेशी शक्तियों से हाथ मिलाया और पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या की साजिश रची। षड्यंत्र रचने और विदेशी शक्तियों से संपर्क साधने में प्रभाकरन के करीबी सेलवरासा पद्मनाथन उर्फ केपी (फिल्म में राजशेखरन) ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरम्बदूर में इस हत्याकांड को अंजाम दे दिया गया।

कश्मीर की राजनीति पर ‘यहां’ और ‘विकी डोनर’ जैसी सफल कॉमेडी फिल्म बना चुके सुजीत सरकार के लिए इतने संवेदनशील मुद्दे पर फिल्म बनाना बड़ी चुनौती था। लेकिन उन्होंने इस काम को बखूबी अंजाम देकर नई पीढ़ी के निर्देशकों के लिए नए रास्ते खोलने की कोशिश की है।  गाने बजाने और हास्य के बिना भी फिल्म की गति कहीं भी टूटती नहीं दिखती। पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या की कड़ियों को बिना किसी ड्रामे के सिलसिलेवार तरीके से जोड़ा गया है। फिल्म का झुकाव किसी एक पक्ष की ओर नहीं लगता। फिल्म का कोई भी सीन बोझिल नहीं है। कुछ सीन तो बिलकुल हॉलीवुड फिल्मों की तरह हैं। फिल्म के संवाद जूही चतुर्वेदी ने लिखे हैं जो इस फिल्म की शैली के मुताबिक आम आदमी की भाषा में ही हैं। 

अगर अभिनय की बात करें तो ‘मद्रास कैफे’ में बड़े नामों की जगह कम दिखने वाले चेहरों को वरीयता दी गई है। विशेष रूप से रॉ-चीफ के रूप में सिद्धार्थ बसु ने खासा प्रभावित किया है। रॉ एजेंट के  छोटे रोल में पत्रकार दिबांग ने भी शानदार अभिनय किया है। नरगिस फाखरी भी विदेशी पत्रकार की भूमिका में ठीक ठाक दिखी हैं। ‘मद्रास कैफे’ के नायक जॉन अब्राहम ने विक्रम के किरदार के साथ पूरा न्याय किया है, उन्होंने अपनी परंपरागत मारधाड़ वाली छवि से बाहर निकलते हुए एक समझदार सैन्य अधिकारी के रूप में अच्छा अभिनय किया है। ‘मद्रास कैफे’ जैसी फिल्म में पैसा लगाने के लिए भी जॉन अब्राहम की तारीफ करनी होगी। विवादों और बॉक्स आॅफिस की परवाह न करते हुए उन्होंने यह फिल्म बनाई। फिल्म की ज्यादातर शूटिंग भारत में ही हुई है। श्रीलंका के जाफना इलाके को भारत में ही रीक्रिएट किया गया  है। हालांकि फिल्म देखते समय ऐसा बिलकुल नहीं लगता। ‘मद्रास कैफे’ भविष्य के हिन्दी सिनेमा की दिशा में एक उम्मीद की तरह दिखती है। फिल्म कापहले दिन का बॉक्स आफिस कलेक्शन कुल 4.5 करोड़ रुपये बताया जा रहा है। सौ करोड़ कमाने की आपाधापी में जुटी फिल्मों की रेस में भले ही यह कम लगता हो, लेकिन जिस संदेश को लेकर यह फिल्म बनाई गई है, वो जरूर अपने अंजाम तक पहुंचता दिख रहा है। 


 - लेखक "संदीप पाण्डेय " आगरा में पत्रकारिता के पेशे से जुड़े हुए है |

सवालों के कटघरे में है अर्थशास्त्र की परिभाषा !

"सियासी दल केवल राजनीतिक सुरक्षा के लिए सदन से सड़क तक हंगामा करते हैं ऐसा कहा जाए तो गलत नहीं होगा। आम आदमी अब इवीएम मशीन के आंकड़ों में फिट बैठ जाए इसी की कोशिश में सभी सियासी दल लगे हैं। भूख मिटाने और आर्थिक हालात को सुधारने के मुद्दों को लेकर तो अब अर्थशास्त्र की परिभाषा भी सवालों के कटघरे में है"

- अखिलेश कृष्ण मोहन 


केंद्र की राजनीति हो या प्रदेश की हर जगह राजनीतिक सुरक्षा ही अहम है। सियासी दल इलेक्टोरल सिक्योरिटी को ही अहमियत दे रहे हैं। उनकी हर योजनाओं में मतदाता चिन्हित किया जा रहा है। सत्ता में आने के लिए गुणा भाग सही हो बस बाकी समाज और आर्थिक हालात पर चिंता करने की जरूरत नहीं है।

सत्ता में बैठे लोग आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा पैदा नहीं कर पाएंगे तो देश प्रदेश में निराशा और हताशा बढ़ेगी ही। यूपीए सरकार का लगातार दूसरा कार्यकाल पूरा होने जा रहा है। दोनों कार्यकाल के प्रधानमंत्री भी मनमोहन सिंह ही हैं। ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि प्रधानमंत्री बदल जाने से अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने वाली और बड़ी योजनाओं को लागू नहीं किया जा सका जिसकी वजह से हालात बदतर हुए हैं। रुपया यूपीए सरकार के बीते 10 सालों में हमेशा कमजोर हुआ है। सरकार भले ही संसद में मजबूती के साथ अपना पक्ष रखने में सफल हो लेकिन 10 सालों में रुपए की गिरती कीमत और अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री का कुछ भी न कर पाना कई सवाल खड़े करता है। सूचनाएं आती रहती हैं कि कांग्रेस के पास जमीनी नेताओं, अर्थशास्त्र के जानकार और न जाने किस किस विधा में पारंगत लोगों की एक बड़ी फौज है। लेकिन इन सूचनाओं ने वास्तव में मन को झकझोरने के अलावा कुछ किया नहीं। महंगाई से आम आदमी क्या खास आदमी भी परेशान है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पूरे पांच साल आश्वासन देते रहे कि महंगाई अगले साल या आने वाले 6 महीनों में कम होगी लेकिन न तो वो अगला साल आया और न ही वो 6 महीने जो लोगों को सुकून दे सकें। पेट्रोल, रसोई गैस, डीजल के दाम ऐसे बढ़े जैसे देश युद्ध जैसी किसी आपात स्थिति से जूझ रहा हो देश और सरकार को मजबूरी में कदम उठाने पड़े हों। पहली बार ऐसा हुआ कि पेट्रोल के दाम एक दो रुपए नहीं बल्कि पांच रुपए प्रति लीटर तक एक साथ बढ़ा दिए गए। महंगाई को दूर करने का आश्वासन तो कोरा आश्वासन ही रहा ऊपर से एलपीजी को लेकर भी सब्सिडी का एक कोटा तय कर दिया गया।

खाने-पीने को लेकर भी एक दायरा तय करने की कोशिश की जा रही है। योजना आयोग की रिपोर्ट कहती है कि शहर में 33 रुपए और देहात में 27 रुपए कमाने वाला गरीब नहीं है यानी वह
सेहतमंद रहने के लिए जरूरी खानपान इतने रुपए में कर सकता है कांग्रेस के कई नेता और मंत्री
तो ऐसे बयान देते हैं जो गरीबों के जख्म पर नमक से कम नहीं। सांसद राजबब्बर कहते हैं कि देश में 12 रुपए में भी भर पेट खाना मिल सकता है। योजना आयोग अपने आंकड़ों के जरिये देश में गरीबी कम कर के दिखा रही है। नए आंकड़ों के मुताबिक देश की आबादी में गरीबों का अनुपात 2011-12 में घटकर 21.9 प्रतिशत पर आ गया। यह 2004-05 में 37.2 प्रतिशत पर था। योजना आयोग ने एक प्रकार से अपने पूर्व के विवादास्पद गरीबी गणना के तरीके के आधार पर ही यह आंकड़ा निकाला है। योजना आयोग के अनुसारतेंदुलकर प्रणाली के तहत 2011-12 में ग्रामीण इलाकों में 816 रुपये रपये प्रति व्यक्ति प्रति माह से कम उपभोग करने वाला व्यक्ति गरीबी की रेखा के नीचे था। शहरों में राष्ट्रीय गरीबी की रेखा का पैमाना 1,000 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति माह का उपभोग है। सरकार फेल है लेकिन पास होने का दावा कर जनता को खाद्य सुरक्षा बिल का भरोसा दे रही है। दूसरी तरफ यूपीए के खिलाफ चार्जशीट तैयार करने में जुटी भाजपा भी मानने लगी है कि महंगाई के मुद्दे पर ही जनता को एक जुट नहीं किया जा सकता । कांग्रेस की कई मुद्दों पर हकीकत बताने के साथ ही समाधान भी बताना होगा। 15 अगस्त को प्रधानमंत्री के लाल किले की प्रचीर से संबोधन को जवाब देते हुए मोदी ने भुज के लालन कॉलेज में ने केवल तिरंगा फहराया बल्कि इस दौरान अपने भाषण में मोदी ने गुजरात की उपलब्धियों का जिक्र करने के साथ ही पीएम मनमोहन सिंह के लाल किले से दिए गए संबोधन पर जमकर हमला बोला। मोदी ने मनमोहन को आर्थिक नीतियों से लेकर विदेश नीति तक घेरा। नई परिपाटी शुरू कर ये दिखा दिया कि पीएम को हर मोर्चे पर भाजपा शिकस्त देगी।    

ऐसा नहीं है कि देश के कार्पोरेट घराने और कारोबारी सरकार की इस कार्यशैली से बहुत संतुष्ट हों । इकॉनोमी की हालत सुधारने में यूपीए सरकार की नाकामी को लेकर कारोबारी भी अपना संयम खो रहे हैं। बीते महीने की 29 जुलाई को दिल्ली में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ट्रेड और इंडस्ट्री काउंसिल में शामिल 20 कॉर्पोरेट लीडर्स में से 5 लोगों ने मीटिंग में हिस्सा ही नहीं लिया। यह मीटिंग ग्रोथ बढ़ानेकरंट अकाउंट डेफिसिट और रुपए में गिरावट जैसे मुद्दों पर चर्चा करने के लिए बुलाई गई थी। मीटिंग में शामिल हुए कई इंडस्ट्री के दिग्गजों ने सरकार की पॉलिसी और इसे लागू करने में कमजोरी को लेकर सवाल उठाए हैं जिसको लेकर प्रधानमंत्री के माथे पर बल पड़ना स्वाभाविक है।

केंद्र की राजनीति हो या प्रदेश की हर जगह राजनीतिक सुरक्षा ही अहम है। सियासी दल इलेक्टोरल सिक्योरिटी को ही अहमियत दे रहे हैं। उनकी हर योजनाओं में मतदाता चिन्हित किया जा रहा है। सत्ता में आने के लिए गुणा भाग सही हो बस बाकी समाज और आर्थिक हालात पर चिंता करने की जरूरत नहीं है। सियासी दल केवल राजनीतिक सुरक्षा के लिए सदन से सड़क तक हंगामा करते हैं ऐसा कहा जाए तो गलत नहीं होगा। आम आदमी अब इवीएम मशीन के आंकड़ों में फिट बैठ जाए इसी की कोशिश में सभी सियासी दल लगे हैं। भूख मिटाने और आर्थिक हालात को सुधारने के मुद्दों को लेकर तो अब अर्थशास्त्र की परिभाषा भी सवालों के कटघरे में है।

- लेखक/ पत्रकार "अखिलेश कृष्ण मोहन" लखनऊ में डीडीसी न्यूज़ नेटवर्क से जुड़े हुए है |

Monday, August 26, 2013

मोबाइल में अनचाही सर्विस लगने की समस्या से मिलेगी निजात, करनी होगी टोल फ्री पे बात...!

"बहुत से उपभोगता ऐसे है जिनके पैसे अनचाही सर्विस लगा कर काट लिए जाते है, और कस्टमर केयर के अधिकारी ऐसी किसी भी सर्विस लग जाने के लिए उस उपभोगता पर ही उसका इल्जाम मढ़ देते है उनके द्वारा वह सर्विस हटा तो दी जाती है लेकिन उनके पैसे वापस नहीं किये जाते..."


- इमरान ज़हीर 


मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश: क्या आपके मोबाइल में बिना वजह अक्सर पैसे कट रहे है | बिना आपकी स्वीकृति के आपके मोबाइल पर कोई सर्विस लगा दी जा रही है जिसकी वजह से आपके मोबाइल का बैलेंस कम हो रहा है | यदि आपके साथ ऐसा हो रहा है तो बेफिक्र हो जाएँ क्युकी इस असुविधा के लिए रिलायंस ने एक टोल फ्री नंबर जारी किया है जिसके प्रयोग से आप अपने मोबाइल में कटे हुए पैसे वापस मंगा सकते है और साथ ही उस अनचाही सर्विस से निजात भी पा सकते है | 

अक्सर उपभोगता को इस बात की शिकायत रहती है की उसके मोबाइल में अनचाही सर्विस लगा कर उसके पैसे काट लिए गए | जिसके बाद उपभोगता विभिन्न्य मोबाइल कंपनियों को फ़ोन कर इस बात की जानकारी देते है जिससे वह सर्विस को हटा दे और उनके काटे गए पैसे वापिस कर दे लेकिन बहुत कम उपभोगता होते है जिनके पैसे वापस किये जाते है जबकि कस्टमर केयर के अधिकारी उस उपभोगता पर ही उसका इल्जाम मढ़ देते है और पैसे वापस करने से इन्कार कर देते है | इस कड़ी में रिलायंस कंपनी ने अपने उपभोगता को राहत देने का काम किया है जिसमे उपभोगता यदि इस परेशानी से जूझ रहा है तो उसके लिए एक टोल फ्री नंबर जारी किया गया | रिलायंस के एक अधिकारी के अनुसार यदि उपभोगता की स्वीकृति के बिना कोई सर्विस लगा दी गई है और उसके मोबाइल से बैलेंस कट गया है तो उसे टोल फ्री नंबर १५५२२३ पर काल करनी होगी जिसके बाद उसके मोबाइल पर लगी सर्विस हटा दी जाएगी साथ ही बिना स्वीकृति से काटे गए पैसे भी उनके मोबाइल में वापिस कर दिए जायंगे लेकिन इसका लाभ उठाने के लिए तत्काल ही इस टोल फ्री नंबर नंबर पर काल करनी होगी | 

बच्चियों के साथ हो रहे अमानवीय बर्ताव को रोकना होगा, करनी होंगी उनकी हिफाज़त...

...अगर बच्चियों / महिलाओं  के साथ ऐसे ही अमानवीय बर्ताव होते रहे तो जो लोग कन्या भ्रूण हत्या से दूर हैं, वो भी इससे अछूते नहीं रहेंगे | आखिर कब तक पुलिस अपनी जिम्मेदारी से बचती रहेगी ?पुलिस पर तब तक लगाम नहीं कसी जा सकती, जब तक अपने काम के प्रति पुलिस नेतृत्व की जवाबदेही तय नहीं की जाएगी। पुलिस नेतृत्व से जवाब मांगना जरूरी है।  इन्हें सस्पेंड या बर्खास्त करने के बजाए इन पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए, ताकि इन्हें भी सजा का एहसास हो। आइए जरा गौर फरमाते हैं कि पुलिस क्या है 



- अरमान आसिफ 

खिर कहां है वो कानून जो महिलाओं के लिए दिल्ली गैंगरेप के बाद बनाया गया था। उन आरोपियों  को तीन  महीने  के अन्दर  सजा की बात हुई थी, लेकिन अभी भी उनका कुछ नहीं हुआ। बलात्कार पीड़ित के लिए स्पेशल डॉक्टरों की सेल बनाने पर सहमति हुई थी, जो अभी तक अमल में नहीं आई। कहां गए वो एक हजार करोड़ रुपये, जो महिला सुरक्षा के लिए बजट में पारित किए गए थे। दिल्ली में एक बार फिर दरिंदगी ने अपना सिर उठाया और  इस बार इस दरिंदगी का शिकार पांच साल की मासूम बच्ची हुई। वो बच्ची, जिसे हर आदमी भैया, चाचा या मामा की तरह दिखता है। दिल्ली पुलिस गैंगरेप कांड के बाद फिर सो गई थी। इस दौरान और बलात्कार की कई वारदातें दिल्ली में हुईं, लेकिन इस घटना ने एक बार फिर बेशर्म पुलिस प्रशासन पर सवाल खड़े कर दिए हैं। लगता है देश की पुलिस को जगाने के लिए धरने-प्रदर्शन करना जरूरी हो गया है। एक तरफ तो बच्ची के साथ बलात्कार होता है, तो दूसरी तरफ उसके मां-बाप को पुलिस दो हजार रुपये देकर मुह बंद कराना चाहती है और बेशर्मी की हद पार करते हुए उस बच्ची के मां-बाप से कहती है जाओ खुद ढूंढ लो जाकर। इस कांड से ठीक दो दिन पहले अलीगढ़ में भी एक पांच साल की बच्ची की बलात्कार के बाद हत्या कर दी जाती है और इंसाफ मांगने पर उसके घरवालों को सड़क पर दौड़ा -दौड़ाकर पुलिस लाठियों से पीटती है और ऊपर से कहती है कि बच्ची के साथ रेप होते किसने देखा है।



आखिर कब तक पुलिस अपनी जिम्मेदारी से बचती रहेगी। पुलिस पर तब तक लगाम नहीं कसी जा सकती, जब तक अपने काम के प्रति पुलिस नेतृत्व की जवाबदेही तय नहीं की जाएगी। पुलिस नेतृत्व से जवाब मांगना जरूरी है।  इन्हें सस्पेंड या बर्खास्त करने के बजाए इन पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए, ताकि इन्हें भी सजा का एहसास हो। आइए जरा गौर फरमाते हैं कि पुलिस क्या है? गृहरक्षा विभाग के अन्तर्गत आनेवाला विभाग होने से देश की कानून-व्यवस्था को संभालने का काम पुलिस के हाथ ही होता है। आपराधिक गतिविधियों को रोकने, अपराधियों को पकड़ने, अपराधियों के द्वारा किए जानेवाले अपराधों की खोजबीन करने, देश की आंतरिक सम्पत्ति की रक्षा करने और जो अपराधी हैं और उनका अपराध साबित करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य जुटाना और राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा पुलिस का कार्य है। लेकिन अब इनका काम सिर्फ राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा तक ही सीमित  रह गया है। दरअसल, देश के हर कोने में बलात्कार की घटनाएं होती हैं। उन सभी घटनाओं को दबाने का काम भी पुलिस ही करती है। यहां 2008-09 की एक घटना का जिक्र जरूरी लगता है, जब मेरी पत्रकारिता की दाढ़ी-मूंछ निकल रही थी। जिला कानपुर देहात के थाना गजनेर से गुजर रहा था कि पुलिस थाने के बाहर खड़े एक गरीब किसान ने मुझे रोककर बताया कि उसकी सात साल की बेटी के साथ बलात्कार किया गया है और थानेदार साहब रिपोर्ट नहीं लिख रहे हैं। तब मैं एक टीवी चैनल को खबरें भेजा करता था। मेरे साथ कैमरामैन भी था, शायद उसी को देखकर उस किसान ने समझ लिया था कि हम पत्रकार हैं।


अक्सर हम पत्रकारों को इंसान के दु:ख दर्द से पहले खबर दिखती है। जब हम थाने के अन्दर पहुंचे, तो थानेदार साहब मुझे नहीं जानते थे। मैंने उनसे कहा कि इस आदमी की बेटी के साथ बलात्कार हुआ है आप रिपोर्ट क्यों नहीं लिखते? थानेदार साहब ने रिपोर्ट लिखने से ये कहते हुए इनकार कर दिया कि उस लड़की के साथ बलात्कार नहीं हुआ है। हमारी और उनकी बात इतनी बढ़ गई कि थानेदार साहब ने हमारा कैमरा छीन लिया और हमसे बदसलूकी करने लगे। जैसे-तैसे निपटारा कराकर हम वहां से निकले और सीधे अस्पताल पहुंचे जहां पीड़ित भर्ती थी। डॉक्टर ने बताया कि लड़की के साथ बलात्कार नहीं हुआ है, लेकिन जब वहां मौजूद एक नर्स से चुपके से पूछा तो उसने बताया कि लड़की के साथ बहुत क्रूरता से बलात्कार किया गया है। मैंने खबर भी चलाई, लेकिन उसका कोई फायदा नहीं हुआ, क्यूंकि बलात्कार करने वाला स्थानीय विधायक का कोई खास बंदा था। चूंकि मामला एक छोटे से गांव से जुड़ा था, जहां न तो विरोध-प्रदर्शन करने वाले होते हैं और न ही मीडिया का वो रोल देखने को मिलता है, जो दिल्ली जैसे शहरों में मिलता है। गरीब की बेटी थी, जिसकी आवाज हुकूमत के कानों तक नहीं पहुंच सकी। लेकिन अगर पुलिस चाहती, तो उस गुनाहगार को सजा जरूर मिल सकती थी।

 आपको ये बात जानकर हैरानी होगी कि जिस थानेदार की मैं बात कर रहा हूं, वो कुंडा के डीएसपी हत्याकांड में भगोड़े साबित किए गए पुलिस अधिकारियों में से एक हैं और आज निलंबित होकर घर में मस्त हैं। समाज को बच्चियों की हिफाजत करनी होगी। दहेज की वजह से कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा मिला है, अगर बच्चियों के साथ ऐसे ही अमानवीय बर्ताव होते रहे तो जो लोग कन्या भ्रूण हत्या से दूर हैं, वो भी इससे अछूते नहीं रहेंगे। लाख कानून बना दिए जाएं, लाख फास्ट ट्रैक कोर्ट बना दिए जाएं, लेकिन जब तक पुलिस अपने कर्तव्यों का निर्वहन सही से नहीं करेगी, तबतक किसी भी अपराधी को कोई भी कोर्ट सजा नहीं  दे सकता, क्यूंकि प्रथम दृष्टया पुलिस ही घटना के सारे सबूत इकठ्ठा करती है। जिस दिन पुलिस सुधर जाएगी, उसी दिन से शैतान इस समाज से गायब हो जाएंगे।



- लेखक "अरमान आसिफ " एक तेज़ तर्रार पत्रकार और ब्लागर है|  


Sunday, August 25, 2013

अराज़क तत्व किसी भी सूरत में बक्शे नहीं जायेगे -मुख्यमंत्री

अयोध्या : ८४ कोसी परिक्रमा को लेकर अयोध्या में प्रशासन पूरी तरह से मुस्तैद  है | पूरा इलाका छावनी में बदल चुका है | कई जगह सड़को को सील कर दिया गया है | पूरे अयोध्या नगरी में आने जाने वालो पर पूरी नज़र रखी जा रही है | उधर दूसरी तरफ प्रवीण तोगड़िया और अशोक सिंघल सहित हजारो लोगो को गिरफ्तार कर लिया गया  है |  हालात के मद्देनज़र मुख्यमंत्री ने कहा है कि अराज़क तत्व किसी भी सूरत में बक्शे नहीं जायेगे |

प्रधानमंत्री और यूपीए अध्यक्ष ने किया राष्ट्रीय मीडिया केंद्र का शुभारंभ


नई दिल्ली : प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने आज राजधानी में राष्ट्रीय मीडिया केंद्र का शुभारंभ किया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा, ”राष्ट्रीय मीडिया केंद्र का उद्घाटन हमारी उस क्षमता का परिचायक है कि हम विश्वभर में ऐसी अत्याधुनिक सुविधाओं के साथ बराबरी कर रहे हैं। यह केंद्र हमारे देश में मौजूदा मीडिया भू. परिदृश्य के सशक्त स्वरूप का प्रतीक है। उन्होंने कहा की मुझे पूरा विश्वास है कि एक 'संचार केंद्र' और 'एकल खिड़की' सुविधा के रूप में यह केंद्र हमारे मीडियाकर्मियों, जिनमें से अनेक यहां मौजूद हैं, की जरूरतों को भलीभांति पूरा करेगा।

प्रधानमंत्री ने कहा, ”परिवर्तन अपने साथ चुनौतियां भी लेकर आता है। पिछले दो दशकों के सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों से उत्पन्न चुनौतियों को समझना, उनसे निपटना और उन पर काबू पाना मीडिया उद्योग के विशेषज्ञों के नाते आपका परम दायित्व है। हमारे जैसे सशक्त लोकतंत्र मेंए जो मुक्त जांच और सवालों के जवाब के लिए अन्वेषण में विश्वास रखता है, यह दायित्व अत्यंत महत्वपूर्ण है। किंतु इस दायित्व का निर्वाह करते समय सावधानी की आवश्यकता है। जांच की भावना मिथ्या आरोप के अभियान में तब्दील नहीं होनी चाहिए। संदिग्ध व्यक्तियों की तलाश खोजी पत्रकारिता का विकल्प नहीं हो सकती। व्यक्तिगत पूर्वाग्रह जनहित पर हावी नहीं होने चाहिए।  

मनमोहन सिंह ने कहा, ”यह वास्तविकता है कि पत्रकारिता को उसके काम से अलग नहीं किया जा सकता। किसी भी मीडिया संगठन का दायित्व सिर्फ उसके पाठकों और दर्शकों तक सीमित नहीं है। कंपनियों का दायित्व अपने निवेशकों और शेयरधारकों के प्रति भी होता है। बॉटम लाइन और हेड लाइन के बीच खींचतान उनके लिए जीवन की सच्चाई है। किंतु, इसकी परिणति ऐसी स्थिति में नहीं होनी चाहिए कि मीडिया संगठन अपने प्राथमिक लक्ष्य को भूल जाएं, जो समाज को दर्पण दिखाने का है तथा सुधार लाने में मदद करने का है। यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि, ”नाटकी और तीव्र बदलाव के दौर से गुजर रहे किसी भी समाज में नवीकरण और पुनर्निर्माण की स्थिर रूप से जरूरत होती है। यह फैसिलिटी उस क्रांति का प्रतिनिधित्व करती है। मुझे पूरी उम्मीद है कि यह सरकार, मीडिया और जनता के बीच प्रभावशाली केंद्र, अड्डा और सूचना पुल बनेगा।
श्रीमती गांधी ने कहा, ”कार्यक्रमों, नीतियों, निर्णयों और जानकारी के प्रचार-प्रसार में सरकार और मीडिया के साझा हित हैं। यही वह बिंदु है जहां राष्ट्रीय प्रेस केंद्र जैसी संस्था का महत्व समझा गया। मुझे उम्मीद है कि यह ऐसी भागीदारी का प्रतिनिधित्व करेगा जिसमें दोनों पक्षों अपनी जिम्मेदारियां निभा सकेंगे।

Saturday, August 24, 2013

रामपुर में २५ अगस्त को आजम खान करेंगे आठ साल से बंद पड़े मुमताज़ पार्क का उद्घाटन |

रामपुर वासियों के लिए खुशखबरी है पूरे आठ साल से बंद पड़े मुमताज़ पार्क को खोलने की हरी झंडी मिल गई है | नगर विकास संसदीय कार्य मंत्री आजम खान के द्वारा किया जायेगा  उद्घाटन  |

- मोहसिन उल्लाह खान 

रामपुर, उत्तर प्रदेश  : रामपुर वासियों के लिए खुशखबरी है पूरे आठ साल से बंद पड़े मुमताज़ पार्क को खोलने की हरी झंडी मिल गई है | नगर पालिका और उधान विभाग की लम्बी कवायद और मेहनत के बाद कई वर्षो से बंद इस पार्क को एक खूबसूरत रूप दिया गया है | जिसका उद्घाटन आगामी २५ अगस्त को नगर विकास संसदीय कार्य मंत्री आजम खान के द्वारा किया जायेगा |
इस  मुमताज़ पार्क को खोलने एवं जिर्डोंद्वार के लिए नगर पालिका ने प्रयास शुरू किये थे और इस सम्बन्ध में उधान विभाग को पत्र भी लिखा गया था | इस पार्क में खूबसूरत फुलवारियो समेत सीमेंटेड बेंच आदि को बनवा कर इसे नया रूप रंग दिया गया है |

Friday, August 23, 2013

महिला फोटोग्राफर के साथ सामूहिक बलात्कार , बलात्कारियों के स्केच जारी

- जेडएनआईन्यूज़ डॉट कॉम


मुंबई : समाज के दुश्मनों ने फिर किया एक महिला के दामन को दागदार |  २२ साल की महिला पत्रकार से मुंबई में महालक्ष्मी इलाके में सामूहिक बलात्कार किये जाने की खबर है | इस घटना के बाद मुंबई में संदिग्धों के स्केच जारी किये गए है जिसके बाद दर्जनों लोगो को हिरासत में लेकर पूछताछ जारी है | इस घटना कर्म के बाद सभी पत्रकारों में भारी आक्रोश है |


जानकारी के मुताबिक इस महिला के साथ मुंबई के परेल इलाके में पांच लोगो ने मिल कर इसके साथ सामूहिक बलात्कार किया | महिला पत्रकार उस समय न्यूज़ कवरेज़ पर शक्ति मिल्स कम्पाउंड में गई थी। मेडिकल जांच में महिला के साथ बलात्कार की पुष्टि हो गई है | ये महिला पत्रकार एक पत्रिका में कार्य करती है उस समय इस महिला पत्रकार के साथ उसका साथी भी था | जानकारी के मुताबिक दरिंदो ने उसके साथी को एक पेड़ से बंध दिया उसके बाद घटना को अंजाम दिया | पुलिस संदिग्धों की तलाश के लिए पकडे गए उन दर्जनों लोगो से कड़ी से पूछताछ कर रही है |

Thursday, August 22, 2013

इंग्‍लैंड की सामाजि‍क कार्यकर्ता जोडी अन्‍डरहि‍ल को पांच लाख रुपए की राशि‍ देने की घोषणा

नई दिल्ली : केन्‍द्रीय पर्यटन राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) डॉ. के. चि‍रंजीवि‍ ने इंग्‍लैंड की सामाजि‍क कार्यकर्ता सुश्री जोडी अन्‍डरहि‍ल को उत्‍तराखंड बाढ़ आपदा राहत के दौरान प्रशंसनीय सेवा देने के लि‍ए पांच लाख रुपए की राशि‍ व्‍यक्‍ति‍गत रूप से देने की घोषणा की है। उत्‍तराखंड में बाढ़ आपदा के बाद सुश्री जोडी अन्‍डरहि‍ल देहरादून के दून हैलीड्रोम के आसपास लगे खाद्य पदार्थों के स्‍टॉलों द्वारा बि‍खेरे गए कूड़ा-करकट को एकत्र करने का कार्य कर रहीं हैं। इन स्‍टॉलों के जरि‍ए आपदा के दौरान बचाए गए तीर्थ यात्रि‍यों और उनके परि‍जनों को भोजन मुहैया कराया जाता था, जो अक्‍सर हैलीपैड पर एकत्र हो जाते थे। 

सुश्री जोडी अन्‍डरहि‍ल मान्‍टेन क्‍लीनर्स की संस्‍थापक हैं। वह एक प्रति‍बद्ध पर्यावरणवि‍द हैं, जि‍न्‍होंने वि‍श्‍वभर में यात्रा कर धन एकत्र करने के साथ-साथ कई कार्यक्रमों का आयोजन कि‍या और चुनौति‍यों का सामना कि‍या। वह अन्‍य दो समूहों लव 4 ति‍ब्‍बत और कॉर्नहोमी कम्‍युनि‍टी प्रोजेक्‍ट की संस्‍थापक भी हैं। 

Wednesday, August 21, 2013

आधार कार्ड को बैंक खाता खोलने के लिए सरकारी वैध दस्‍तावेज के रूप में स्‍वीकार करें बैंक -आरबीआई

नई दिल्ली : भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अधिसूचित किया है कि आधार कार्ड अपना ग्राहक जानो (KYC) योजना के अधीन बैंक खाता खोलने के लिए वैध सबूत है। 

आरबीआई ने अपने 28 सितम्‍बर, 2011 के परिपत्र द्वारा बैंकों से कहा कि वे भारतीय विशिष्‍ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) द्वारा जारी आधार कार्ड को बैंक खाता खोलने के लिए सरकारी वैध दस्‍तावेज के रूप में स्‍वीकार करें। इसके अलावा आरबीआई ने बैंकों को अपने 10 दिसंबर, 2012 के परिपत्र द्वारा यह भी सलाह दी है कि यदि खाताधारी द्वारा दिया गया पता वही है जो आधार कार्ड पर लिखा है तो उसे पहचान और पते के सबूत के रूप में स्‍वीकार किया जाये। यह जानकारी वित्‍त मंत्रालय में राज्‍य मंत्री नमो नरायण मीणा ने लोकसभा में एक प्रश्‍न के लिखित उत्‍तर में दी। 

आसाराम पर नाबालिग लड़की के साथ यौन उत्पीडन का मामला दर्ज


इससे पहले भी आसाराम बापू पर पहले भी कई गंभीर आरोप लगाये जा चुके है जिसमे  महिलाओं के साथ यौन संबंध बनाने के साथ ही कई अन्य संदिग्ध  मामले उजागर हुए है |


-जेडएनआईन्यूज़ डॉट कॉम 

नई दिल्‍ली: देश में रोज़ महिलाओं के साथ बलात्कार होने जैसी खबरे गूँज रही है वही अभी एक ताज़ा मामला सुर्ख़ियों में आया है | आध्यात्मिक गुरु आसाराम बापू पर एक नाबालिग लड़की के साथ यौन उत्पीडन का आरोप लगाने जैसा मामला सामने आया है|


दिल्ली पुलिस के कमला बाज़ार थाने में इस नाबालिक लड़की ने आध्यात्मिक गुरु आसाराम बापू के खिलाफ यौन उत्पीडन का मामला दर्ज करवाया है |  लड़की ने अपनी शिकायत में कहा है ये मामला राजस्थान के जोधपुर आश्रम का है. और उसके साथ जोधपुर आश्रम में ही उसका यौन शोषण किया| मामला जोधपुर का होने के कारण पुलिस ने इस केस को राजस्थान में हस्तांतरित किये जाने की बात कही है | बता दे की इससे पहले भी आसाराम बापू पर पहले भी कई गंभीर आरोप लगाये जा चुके है जिसमे  महिलाओं के साथ यौन संबंध बनाने के साथ ही कई अन्य संदिग्ध  मामले उजागर हुए है |

स्व. राजीव गांधी सद्भावना, समन्वय व समता की प्रतिमूर्ति थे - सैयद जमाल

-फैज़ हसन खान 

गोरखपुर। स्व. राजीव गांधी की जयंती पर यहाँ के कांग्रेस नेताओ इसे सद्भावना दिवस के रूप में मनाया। इस अवसर पर गोरखपुर जिला  कमेटी के  जिलाध्यक्ष सैयद जमाल अहमद ने अपने व्यक्तव्य में कहा की  स्व. राजीव गांधी सद्भावना, समन्वय व समता की प्रतिमूर्ति थे गरीब और मजबूर कमजोर लोगो की मदद करना और और उन्हें बेहतर जगह पर स्थापित करना उनका सपना था | उन्होंने कहा की देश को अंतर्राष्ट्रीय फलक पर लाने का जो काम किया है उसे देश कभी भी नहीं भूला सकता है। 

उन्होंने आगे कहा कि देश में त्रिस्तरीय पंचायतीराज व्यवस्था, दूरसंचारक्रांति और कंप्यूटर उनकी ही देन है। पंडित जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी के बाद स्व. राजीव गांधी को आधुनिक भारत का निर्माता कहना सर्वथा न्यायसंगत है। 

एमसीआई से मान्‍यता के बगैर एलोपैथी की प्रैक्टिस पर रोक

नई दिल्ली : भारतीय चिकित्‍सा परिषद (एमसीआई) ने महाराष्‍ट्र सरकार को सूचित किया है कि एमसीआई से मान्‍यता प्राप्‍त योग्‍यता और रजिस्‍ट्रेशन के बगैर कोई भी व्‍यक्ति एलोपैथी की प्रैक्टिस नहीं कर सकता। महाराष्‍ट्र सरकार ने राज्‍य में होम्‍योपैथी के डॉक्‍टरों को एलोपैथी की भी प्रैक्टिस करने की अनुमति देने के संबंध में एमसीआई की सलाह मांगी थी। यह जानकारी आज केन्‍द्रीय स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्री गुलाम नबी आजाद ने लोकसभा में एक लिखित उत्‍तर में दी। 

श्री आजाद ने बताया कि राज्‍य सरकारे, उच्‍च न्‍यायालय के वर्ष 1998 के फैसले की पृष्‍ठभूमि में भारतीय चिकित्‍सा पद्धति के डॉक्‍टरों को एलोपैथी की भी प्रैक्टिस करने की अनुमति देने के लिए कानून में संशोधन कर सकती है। इस बीच, आयुष विभाग ने केन्‍द्रीय भारतीय चिकित्‍सा पद्धति परिषद से अनुरोध किया है कि वह आयुर्वेद, यूनानी और सिद्ध पद्धतियों के डॉक्‍टरों को एलोपैथी की प्रैक्टिस करने के योग्‍य बनाने के लिए एक समूचित पाठ्यक्रम तैयार करें। 

कुरान के मूल्‍य नहीं पर कानून बदलेंगे



सुन्नी इस्लाम में शरीअत के चार स्रोत हैं-कुरान, हदीस, इज्मा और कियास। कियास यानी जब कोई चीज कुरान या हदीस में नहीं मिलती तो आप उस तरह के हालात के आधार पर समस्याओं का हल तलाशते हैं। जब यह काम हो गया तो इस हल के लिए आप आम सहमति पैदा करना चाहते हैं ताकि सब उसे स्वीकार कर लें। इसमें सिर्फ कुरान खुदाई है। हदीस, इज्मा और कियास मानव निर्मित है।
नसीरुद्दीन हैदर खाँ
स्लामी विद्वान, ‘सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसायटी एण्ड सेक्युलरिज्म` के प्रमुख और देश में फिरकापरस्ती के खिलाफ आवाज बुलंद करने वालों में अग्रणी डॉ. असगर अली इंजीनियर से नासिरूद्दीन की हुई बातचीत का पहला हिस्‍सा धर्म की प्रासंगिकता-1 और दूसरा हिस्‍सा शरीअत को लगातार बदलते रहना चाहिए थी। यह बातचीतअन्‍यथा पत्रिका के ताजा अंक में प्रकाशित हुई है। तीसरा हिस्‍सा पेश है-
शरीअत क्या हैक्या इसमें बदलाव सम्भव है
शरीअत, कुरान और हदीस पर आधारित है। लेकिन इसमें मानवीय व्याख्या भी शामिल है। कौन सी हदीस मानेंगे या नहीं मानेंगे, यह भी आदमी के फैसले पर निर्भर है। यहाँ तक कि कुरान की समझ भी मानवीय निर्णय पर आधारित है। शरीअत को पूरी तरह डिवाइन (खुदाई) या अपरिवर्तनीय मानना सही नहीं है। शरीअत कुछ डिवाइन स्रोत पर आधारित है लेकिन उस डिवाइन स्रोत की समझ, मानवीय है। जिस हद तक वह मानवीय है, उसे बदला जा सकता है।
हदीस के सोर्स पर सवाल उठाया जा सकता है या नहीं?
क्यों नहीं उठा सकते। सारे मसलक अलग-अलग इसीलिए हुए कि अलग-अलग मसलक के लोग अलग-अलग हदीसें इस्तेमाल करते हैं। जैसे अहले हदीस हैं, वो तीन तलाक को नहीं मानते। हदीस के हवाले से ही नहीं मानते हैं। दूसरे मसलक मानते हैं, वो भी हदीस के हवाले से मानते हैं… तो हदीस का मसला विवादास्पद है। मुसलमानों में एक मसलक ऐसा भी है, जो हदीस को पूरी तरह नकारता है। यह अहले कुरान कहलाते हैं। यह भी सचाई है कि रसूल ने मना किया था कि हदीसें मत जमा करो, कल तुम इस पर लड़ोगे। हजरत अबु बक्र ने मना किया, हदीसें जमा मत करो। हजरत उमर के जमाने में ढाई-तीन साल तक हदीसों को स्वीकार नहीं किया जा रहा था।
फिर शियों की हदीस अलग है। सुन्नियों की हदीस अलग है। बरेलवियों की अलग है। तो आप क्या करेंगे। आप फिर यह कैसे कहेंगे कि शरीअत खुदाई है। यहीं साबित हो जाता है कि शरीअत का बड़ा हिस्‍सा मानव निर्मित है। अगर आदमी ने शरीअत बनाया है तो उसे बदलना चाहिए।
उस दौर में पैगम्बर से कई सवाल पूछे जाते थे, उसका वो जवाब देते थे। यह जवाब एक-दूसरे से आगे बढ़ी। वो ही हदीस है। जब शरीअत लॉ का संग्रह किया जा रहा था, तो हदीसों का सहारा लिया गया।
सुन्नी इस्लाम में शरीअत के चार स्रोत हैं-कुरान, हदीस, इज्मा और कियास। कियास यानी जब कोई चीज कुरान या हदीस में नहीं मिलती तो आप उस तरह के हालात के आधार पर समस्याओं का हल तलाशते हैं। जब यह काम हो गया तो इस हल के लिए आप आम सहमति पैदा करना चाहते हैं ताकि सब उसे स्वीकार कर लें। इसमें सिर्फ कुरान खुदाई है। हदीस, इज्मा और कियास मानव निर्मित है।
जब इतना हिस्सा शरीअत का मानव निर्मित है, तो उसमें बदलाव करना चाहिए। जैसे चार शादी का मसला है। कुरान ने कहीं नहीं कहा कि चार शादी करो, बल्कि सावधान किया कि मत करो। क्यों, क्योंकि तुमसे इंसाफ नहीं होगा। नामुमकिन है सभी बीवियों से इंसाफ करना। इस पर कई हदीसें हैं। हदीसें इस्तेमाल कर-कर के इसे जायज बना लिया गया। इसीलिए शरीअत का कुछ हिस्सा खुदाई है तो कुछ हिस्सा मानव निर्मित। तो उस हद तक तो बदलाव होना चाहिए।
कुरान जो मूल्य देता है, वह स्थाई है। बहुत सारी चीजें कुरान में संदर्भ के साथ, उस समय के हालात के मुताबिक है। जैसे-दासता। उस वकत दास रखने की इजाजत देनी पड़ी क्योंकि हालात ऐसे थे लेकिन संकेत दे दिया कि यह होना नहीं चाहिए। हालांकि आज भी ऐसे उलमा हैं जो कहते हैं कि हमें हक है गुलाम रखने का। वो बेइमानी करते हैं, कुरान के साथ। उन चीजों को उठा लेते हैं, जहाँ गुलाम रखने की इजाजत है। उस चीज को छिपा लेते हैं, जहाँ इसे मानवीय सम्मान के खिलाफ बताया गया है। यह चयनित नजरिया है। अगर मैं पुरातनपंथी हूँ तो ऐसी ही चीजें चुनूँगा कुरान या गीता से, जो मेरे नजरिये के मुताबिक हो और उसे मजबूत करे। बाकि को मैं छिपा जाता हूँ। इसीलिए जब तक पूर्णता में कोई बात नहीं होगी तो दिक्कत होगी।
मैं कुरान की आयतों को दो हिस्सों में बाँटता हूँ- नार्मेटिव (आदर्शमूलक) और कांटेक्सट्य़ूअल (सन्दर्भगत)। जो चीजें उस वक्त के खास सन्दर्भ में आईं थीं यानी कांटेक्सट्य़ूअल आज लागू नहीं होंगी। जो आदर्श है, वह आज भी लागू होगी। कुरान में जितने मूल्य हैं, वह सब नार्मेटिव हैं। कुरान में इंसाफ एक नार्म है, बहुविवाह एक कांटेक्सट है। सो नार्म विल प्रिवेल ओवर कांटेक्सट।
मैं कुरान की आयतों को दो हिस्सों में बाँटता हूँ- नार्मेटिव (आदर्शमूलक) और कांटेक्सट्य़ूअल (सन्दर्भगत)। जो चीजें उस वक्त के खास सन्दर्भ में आईं थीं यानी कांटेक्सट्य़ूअल आज लागू नहीं होंगी। जो आदर्श है, वह आज भी लागू होगी। कुरान में जितने मूल्य हैं, वह सब नार्मेटिव हैं। कुरान में इंसाफ एक नार्म है, बहुविवाह एक कांटेक्सट है। सो नार्म विल प्रिवेल ओवर कांटेक्सट।
उस कांटेक्सट में बहुविवाह की इजाजत दी गयी लेकिन आदर्श की बरतरी बताते हुए कि ‘जस्टिस इज मोर फंडामेंटल दैन पॉलिगेमी`। मुसलमानों ने बहुविवाह को अहम बना लिया और इंसाफ को छोड़ दिया। मेरी सारी लड़ाई यही है कि ‘जस्टिस इज फंडामेंटल नॉट पॉलिगेमी।` इंसाफ नहीं होता है तो बहुविवाह की इजाजत नहीं हो सकती। इसलिए मूल्य स्थाई रहेंगे और क्वानीन बदलते रहेंगे क्योंकि एक समाज में उन्हीं मूल्यों के आधार पर एक तरह के कानून बनेंगे तो किसी और समाज में उन्हीं मूल्यों के आधार पर दूसरे कानून। इसीलिए लॉ कभी भी स्थाई नहीं हो सकता। वही बात शरीअत पर भी लागू होती है। कुरान के मूल्य कभी नहीं बदलेंगे। लेकिन उन मूल्यों के आधार पर बने कानून बदलते रहेंगे।
इकबाल अपने रिकंस्ट्रक्शन ऑफ रीलिजियस थॉट इन इस्लाममें बहुत साफ कहा है कि मुसलमानों की हर पीढ़ी को शरीअत के बारे में पुनर्विचार का अधिकार होना चाहिए। और शरीअत लॉ में बदलाव होना चाहिए। वह उसी समझ के तहत यह बात कह रहे थे कि सामाजिक जरूरत बदलती है। तुर्की में जो उस वक्त हो रहा था, उसका उन्होंने स्वागत किया। कमाल पाशा जो बदलाव ला रहे थे, वो उसकी काफी प्रशंसा कर रहे थे। उन्होंने कहा, जो काम पहले उलमा करते थे, उसे अब पार्लियामेंट को करना होगा। निर्वाचित प्रतिनिधि को करना होगा। वो लोग सामाजिक जरूरत के हिसाब से बदलाव के लिए आम सहमति पैदा करने का काम करेंगे। लेकिन उलमा इसे कभी तस्लीम नहीं करेंगे क्योंकि इससे उनकी लीडरशीप जाती है। एक मसला लीडरशीप का भी है। सारे मसलक के नेता जो आपस में लड़ते हैं, वो वास्तव में सत्ता की लड़ाई है। चाँद के मसले पर भी जो होता है, वह यही है।
फतवों को आप किस रूप में देखते हैं
मौलाना फतवे अपने-अपने मसलक (पंथ) के हिसाब से देते हैं। ससुर के बलात्कार की पीड़ित इमराना ने अपने बारे में दिये गये फतवे को नहीं माना। आज भी वह अपने शौहर के साथ रह रही है। शौहर ने भी नहीं माना उस फतवे को। अपनी बीवी को नहीं छोड़ा उसने। इसीसे से हम समझ सकते हैं कि फतवा कितना बाध्यकारी है। फतवा महज एक राय है, जो किसी आलिम द्वारा किसी खास मसले पर दिया जाता है। कोई माने न माने, यह उसकी आजादी का सवाल है। इसीलिए कहा जाता है कि इस्लाम में प्रीस्टहूड नहीं है। कोई यह नहीं कह सकता कि फतवा मानना ही पड़ेगा।
                              -जाने माने लेखक/वरिष्ठ पत्रकार  "नसीरुद्दीन हैदर खाँ" की वेबसाइट "जेंडर जिहाद" से साभार