-नासि
रूददीन हैदर खाँ
यह चूरन दूर देश तक मशहूर है। मशहूर हो भी क्यों न? पुत्र लिंग पैदा करने का जो दावा है। कोई विज्ञापन नहीं। कोई तामझाम और लुभाने वाली पैकिंग नहीं। बस पुड़िया में बाँध कर मिलेगी। एक चुटकी का कमाल! बुंदेलखंड ही क्यों हमारे समाज में पुत्र चाह कितनी मजबूत है, यह इन चीजों से भी पता चलता है।
बांदा शहर से कोई 15 किलोमीटर दूर सेमरा क्षेत्र में ऐसा ही चूरन मिलता है। सिर्फ इस चूरन की वजह से यह गाँव दूर-दूर तक जाना जाता है। मुख्य सड़क से काफी अंदर कच्चे-पक्के रास्ते से होकर आने में जितनी मशक्कत करनी पड़ती है, उसी से अंदाजा लगता है कि बेटे के लिए लोग कितने पापड़ बेलते हैं। इस पापड़ बेलने में लोगों को तनिक भी परेशानी नहीं है। ‘चिराग’ का सवाल है जनाब! यह ‘पुत्र चूरन जड़ी-बूटी’ मियाँ-बीवी की जोड़ी बेचती है।
(बुंदेलखंड में लिंग जाँच के बारे में एक सीरिज मैंने पाँच साल पहले लिखी थी। ये सिलसिलेवार तरीके से ‘हिन्दुस्तान’ में छपीं। जेण्डर जिहाद के लिए हिन्दुस्तान से साभार यहाँ फिर से पेश कर रहा हूँ ताकि इस समस्या के बारे में जमीनी हकीकत समझने में आसानी हो।- नासिरूद्दीन
झोपड़ी में बैठी सुखमती (असली नाम नहीं) बताती है ‘‘पास के गाँव के एक ब्राह्मण बाबा से सीखे हैं। उनके पास एक वैद्यक (किताब) है, उसी में इस दवा का जिक्र है। भगवान का आशीर्वाद है और हाथ का जस भी।’’ एक चुटकी चूरन को गुड़ में मिलाकर एक पाव दूध के साथ तीन महीने तक हर रोज सुबह-सुबह गर्भवती महिला को पीना पड़ता है। किसी भी गाय का दूध नहीं चलेगा, बल्कि उसी गाय का असरदार होगा जिसने बछड़े को जन्म दिया हो। (जरा सोचिए न्, बछिया वाली गाय के दूध से पुत्र कैसे होगा!)
सुखमती का कहना है, ‘‘बिलासपुर, बांदा, झाँसी, कानपुर, चित्रकूट के तो लोग आते ही हैं, यह दवा सउदी अरब भी जाती है। किसी-किसी दिन तो खाने का टाइम नहीं मिलता, इतने लोग आ जाते हैं।’’ आसपास के कई लोगों के वह नाम गिनाती है, जिन्हें इस चूरन के ‘पुण्य प्रताप’ से लड़का हुआ है। इनमें हिन्दू भी हैं और मुसलमान भी। जब मैंने ‘बेटा चूरन’ यह कहकर माँगा कि मेरी पत्नी को एक माह का गर्भ है। तो सुखमती ने कहा, ‘‘सही समय है। एकदम कामयाब होगा चूरन।’’ यानी गर्भ ठहरने के बाद चूरन से भ्रूण का ‘लिंग’ बेटे वाला हो जायेगा!
पैसे के बारे में पूछने पर सुखमती बताती है, दो सौ-सौ, जो चाहो दे दो। लड़का होने पर ढेर सारे पैसे लोग दे जाते हैं। खूँटी पर टंगे नए कुर्ता-धोती की ओर इशारा करते हुए कहती है, ‘‘अभी एक जने को लड़का हुआ है, वही दे गए हैं।’’ वह चूरन ही नहीं देती बल्कि जच्च का पेट देखकर भी बता देती हैं कि गर्भ में लड़का है या लड़की।
कैप्सूल बढ़ाएगा पुत्र वाला क्रोमोसोम!
आयुर्वेद और पुराणों का बेटियों के खिलाफ कैसा इस्तेमाल हो रहा है, यह बांदा/ कर्वी और आसपास के बाजरों में बिकने वाली दवाओं से पता चलता है। यह दवाएँ दूसरे शहरों में भी मिलती हैं, लेकिन पिछड़ा समङो जाने वाले बुंदेलखंड में इनका बिकना स्त्रियों के संदर्भ में खास मायने रखता है।
एक सिरप है एसआरपी केमिकल इंडस्ट्रीज, हाथरस की ‘गर्भिणी’। इसके साथ पुत्रप्रदा योग दवा मुफ्त मिलती है। इस कम्पनी का कहना है कि गर्भ का लिंग निर्धारण 40 से 60 दिनों में होता है इसलिए इसे गर्भ धारण के बाद तीन माह तक पाँच-पाँच ग्राम सुबह-शामदूध के साथ खाना है। .. ताकि पुत्र पैदा हो! बांदा के अतर्रा कस्बे के दुकानदार के मुताबिक, इसकी खूब माँग है।
दूसरी ओर, एक और दवा है, ‘वाई स्पर’। बांदा शहर में बिक रही है। आयुर्वेदिक दवा है, लेकिन पुत्र चाह वाले ग्राहकों को नाराज नहीं करना है, इसलिए एलोपैथिक डॉक्टर भी इसे लिख रहे हैं। विल्को लैबोरेट्रीज प्राइवेट लिमिटेड, भावनगर (गुजरात) का 30 कैप्सूलों वाला यह डिब्बा 384 रुपये पचास पैसे में बाजार में है।
एक डॉक्टर इसे सुबह शाम खाने की सलाह देते हैं। किन लोगों को देते हैं, पूछने पर डॉक्टर साहब बताते हैं, अक्सर बेटे के लिए परेशान रहने वाले लोग किसी दवा की माँग करते हैं तो उन्हें यह कैप्सूल खाने की सलाह देते हैं। इस दवा के करामात के बारे में इनका कहना है कि पुत्र के लिए जरूरी वाई क्रोमोसोम बनाने का दावा कम्पनी करती है। इसके साथ वो जोड़ते हैं, हालाँकि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। आमतौर पर आयुर्वेदिक दवाओं के साथ दिये जाने वाले निर्देश इसमें नदारद है। शायद कानूनी कार्रवाई से बचने के लिए यह होशियारी बरती गयी है।
क्या है पुत्र जीवक
इस कैप्सूल में मुख्य तत्व है, ‘पुत्र जीवक’। इसी तरह कई अन्य औषधियाँ भी इसी योग से बन रही हैं। इसके बारे में आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. वाचस्पति त्रिवेदी कहते हैं, एक फल होता है जिसके बीज में गिरी होती है, जिसे आयुर्वेद में ‘पुत्र जीवक’ के नाम से जाना जाता है। कई पौराणिक ग्रंथों और आयुर्वेद की पुस्तकों में इसका जिक्र मिलता।
डॉ. त्रिवेदी के मुताबिक यह पुत्रदायक योग का एक कारक है। जिस स्त्री को पुत्र न होता हो, गर्भ न ठहरता हो, गर्भ गिर जाता हो उसे यह दिया जाता है। इसी तरह पुरुषों में पौरुषता बढ़ाने के लिए दी जाती है।
कमाल यह है कि कुछ साल पहले एक विदेशी कम्पनी जब मनचाही संतान पैदा करने की दवा बेचने आयी तो कई संगठनों ने उसे पुत्र चाह की वजह से भारत के बिगड़ते लिंग अनुपात के लिए खतरनाक माना था। उस पर पाबंदी भी लगी। लेकिन इस वक्त बांदा/कर्वी/ चित्रकूट या फिर लखनऊ में ही ‘पुत्र’ वाली ऐसी दवाओं पर न तो हो हल्ला है और न ही कोई कार्रवाई। बस, बिटिया के एवज में बेटा देने के दावे का धंधा चालू आहे।
-जाने माने लेखक नसीरुद्दीन हैदर खाँ की वेबसाइट जेंडर जिहाद से साभार