- इमरान ज़हीर
क्या मुझे मखमली
बिस्तर पर सोने का हक नहीं
है... क्या मुझे साफ़ और अच्छे कपडे पहनने का हक नहीं है.... क्या मुझे भर पेट
खाना खाने का हक नहीं है.... क्या
मुझे खिलौना नसीब नहीं है... और बच्चो की तरह जब मै जब रोती हूँ तो कोई मुझे अपनी
गोद में नहीं लेता...
कोई मुझे दुलार कर चुप क्यू नहीं कराता...आखिर मेरे साथ ही ऐसा क्यू है... मेरा
दोष क्या मेरी गरीबी है...? मेरी आँखों से
मेरे दर्द को महसूस कीजिये मुझे भी मेरा बचपन जीने का हक दीजिये... मेरी
तरह लाखो बच्चे इस आस में अपनी नन्ही मासूम
आँखों से खुशियों को तलाशती है... लेकिन हमारी गरीबी देख कर कोई भी हमें
प्यार से नहीं देखता... जबकि साफ़ और अच्छे कपडे पहने बच्चो को सभी प्यार करते है
हंसाते है और दुलार भी करते है...क्या ये दुनिया सिर्फ अमीरों की है.... मुझे भी हक दीजिये भले ही हम गरीब है लेकिन हम
भी और बच्चो की तरह मासूम है...
बहुत से सवाल इस बच्चे की आँखों से ब्यान
हो जाते है जब ये बच्चा टकटकी लगाये देखता है | मैंने इस बच्चे को जब देखा तो इसकी
आँखों में बहुत से सवाल नज़र आने लगे | मुहं से तो कुछ नहीं लेकिन अपनी आँखों से और
अपनी हरकतों से इस बच्चे ने वो शब्द बयान कर डाले जिसने मेरे दिल को मोह लिया | इस
बच्चे की आँखों में नज़र आ रहे कुछ सवालों को शायद मै ढूंढने में कामयाब रहा...|

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