Tuesday, July 5, 2011

ये विद्यामंदिर है या पैसा लूटने वाले संस्थान?


देश में साक्षरता अभियान चलाने से क्या आज एक गरीब और माध्यम वर्गीय परिवार अपने बच्चो के उज्जवल भविष्य के लिये निश्चिन्त हो सकता है? ये एक ऐसा सवाल है जिसे ले कर तमाम ऐसे परिवार चिंतित है जो या तो गरीब है या फिर एक मध्यम श्रेणी से ताल्लुक रखते है| 

अपने बच्चो के उज्जवल भविष्य की राह देख रहे अधिकाँश परिवार आज चिंतित अवस्था में देखे जा सकते है वो भी सिर्फ इसलिए की वो अपने बच्चो को एक अच्छे स्कूल में पढ़ाने में असमर्थ है| स्कूलों की आसमान छूती फीस एक मध्यम परिवार और गरीब परिवार के बच्चो को बुलंदियों तक जाने से रोकने का का काम कर रही है | इन सब से बेखबर हमारी सरकार इन पर कोई शिकंजा कसने के बजाये चिर निंद्रा में सो रही है| हमारी सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता उस परिवार से जो अपने बच्चो को उच्य शिक्षा देने के लिये रात दिन कड़ी धूप में दो पैसो का इंतज़ाम करते है | लेकिन रात दिन की जाने वाली मेहनत से मिले पैसे भी उनके बच्चो को एक अच्छी शिक्षा दिलाने में नाकाफी है| सरकारी विद्यालय में पढाई के नाम पर खानापूर्ति के अलावा कुछ भी नहीं होता| स्कूल के समय में अध्यापको का सोना एक आम बात है | ऐसे में गरीब और मध्यम परिवार के बच्चो के भविष्य के बारे में सहज ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है की उनके भविष्य के साथ कितना घिनौना मज़ाक किया जा रहा है| 

ऐसे में एक ऐसा परिवार जिसकी आमदनी कम है लेकिन अपने बच्चो को एक अच्छे स्कूल में पढ़ाने का  जज्बा हो तो उसके इस अरमान पर पानी ही फिरेगा क्यूकी यहाँ अच्छे स्कूल में दाखिला से लेकर उनकी आसमान छूती फीस इन्हें निराश कर देती है| आईये नज़र डालते है एक इंग्लिश मीडियम दर्जे के स्कूल की जहाँ पर दाखिला से लेकर जमा कराई जा रही भारी भरकम फीस के ब्योरे पर| 
प्राइवेट स्कूल जो की आज कुकुरमुत्तो की तरह अपना पैर पसार रहे है जिनका उद्देश्य सिर्फ मोटी कमाई करना है ना की बच्चो के भविष्य के बारे में सोचना| आसमान छूती फीस से अमीरों की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता जबकि एक गरीब और मध्यम परिवार के लोग असहाय होते है अपने बच्चो को एक अच्छी शिक्षा दिलाने के लिये | ऐसे ही मध्यम परिवार की माने तो अपने बच्चो को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिये प्राइवेट स्कूल का दरवाज़ा देखना पड़ता है जहाँ पर दाखिले के लिये कम से कम एक मुश्त 5000 रूपये की रकम जमा कराई जाती है| इसके बाद स्कूल द्वारा ही महंगे ड्रेस उपलब्ध कराये जाते है जिसके लिये उन्हें अलग से पैसो की अदायगी करनी पड़ती है| स्कूल डायरी और आई कार्ड के नाम पर अलग से पैसे लिये जाते है| इतना कुछ होने के बाद भी प्राइवेट स्कूल का पेट नहीं भरता, इसके बाद विभिन्य विषय की किताबो को खरीदने के लिये एक तय किये हुए पुस्तक भण्डार पर जाने के लिये कहा जाता है जहाँ पर इनके स्कूल की किताब उपलब्ध होती है| सबसे हैरानी वाली बात की इन स्कूलों की किताब भी शहर के सिर्फ उस बुक स्टाल पर मिलती है जिनकी सूचना स्कूल द्वारा अभिभावकों को दी जाती है| चर्चा में हमेशा रहा है की इन स्कूलों को कमीशन  के नाम पर ऐसे बुक स्टाल मोटी रकम देने का काम करते है| अभी तक सिर्फ किताबो को खरीदने के लिये कहा जाता था लेकिन आज स्कूल का नाम प्रिंट की हुई मंहगी कापियों को भी खरीदने के लिये कहा जाता है ऐसा ना करने पर बच्चो को डांटा जाता है और स्कूल की प्रिंट की हुई कापी लाने को कहा जाता है| चलिए अब बात करते है हर महीने जमा कराई जा रही फीस के बारे में, कुछ प्राइवेट स्कूल माहवार फीस के नाम पर एक साथ दो माह के लिये  1200 रूपये तो कुछ 1500 रूपये जमा करवाते है| कुछ स्कूलों में  तीन माह की फीस 1500 जमा कराई जाती थी लेकिन अब उन्ही स्कूलों की फीस सिर्फ दो माह की 1800 रूपये कर दी गई है| इतनी भारी भरकम फीस लेने के बाद भी इन स्कूलों का पेट भरता हुआ नज़र नहीं आता ऐसे स्कूल  साईकिल स्टैंड के नाम पर 400 रूपये सालाना जमा करवाते है जिसे जमा करना एक मजबूरी में शुमार होता है| दूसरी तरह स्कूल में वार्षिक समारोह के नाम 200 रूपये तो ऑनलाइन प्रैक्टिकल के नाम पर 100 रूपये ले कर अभिभावकों का खून चूसते नज़र आते है | ऐसे स्कूलों का अभिभावकों से पैसा वसूलने का दौर यही ख़तम नहीं होता स्कूल से जाने वाले बच्चो के पिकनिक/ टूर के नाम पर 300 से 500 रूपये और वसूले जाते है| एग्जाम फीस भी अलग से ;लिये जाने का खेल भी निराला है | ऐसे में गरीब और मध्यम परिवार जाये तो जाये कहाँ? पैसे वाले अभिभावक इनकी मनमानी पर कोई आपत्ति नहीं करते जबकि गरीब और मध्यम परिवार के आपत्ति करने पर जवाब दिया जाता  है की अगर आप इतनी फीस नहीं दे सकते तो किसी और सस्ते स्कूल में अपने बच्चो का दाखिला दिला दो| आज के प्राइवेट स्कूल भी सरकारी स्कूल की तर्ज पर चलने लगे है स्कूल में कम घर पर मोटी फीस लेकर पढ़ाने का दौर भी खूब चलने लगा है| 
बहरहाल सोचना ये है की क्या ऐसे में एक गरीब और मध्यम परिवार के बच्चो को आसमान की बुलंदियों तक पहुचने का अधिकार नहीं है?  इनकी क्या गलती है की ये गरीब है? इनकी क्या गलती है की ये एक मोटी फीस देने में सक्षम नहीं है| आज आवश्यकता है ऐसे परिवार के बच्चो के बारे में सोचने की| सरकार को जागना होगा, ऐसे स्कूलों की मनमानी पर रोक लगानी होगी नहीं तो हम कई ऐसे होनहार बच्चो से हाथ दो बैठेंगे जो हमारे देश का नाम रोशन करने के लिये बेहतर शिक्षा पाने के इंतज़ार में है | 

Monday, April 11, 2011

वसूली की शिकायत पर भड़का बिजली विभाग का अधिकारी !

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश: देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल बिल के लिये चली आंधी से जहाँ देश हिल गया वही मुरादाबाद जैसे जिले में मानो इस आंधी का खौफ विभागों में नहीं देखा गया| वही पुराना राग उपभोगता को लूटो और सिर्फ लूटो और अपनी जेब भरो की कहानी दोहराई जा रही है| पहले से ही बदनाम बिजली विभाग ने फिर एक ऐसी कहानी को जन्म दे दिया है जो अन्ना की इस आंधी को धता बता रही है| 

अभी ताज़ा मामला बिजली विभाग का सामने आया है जहाँ पर एक गरीब परिवार से बिजली का नया कनेक्शन लगाने के बदले सुविधा शुल्क के नाम पर अच्छे खासे पैसे मांगे गये| सबसे हैरत वाली बात ये है की उस छेत्र के जे. ई. साहब ने खुले रूप में उस उपभोगता से दो कनेक्शन के नाम पर फाइल पर हस्ताक्षर करने के बदले 1000 रूपये वसूल लिये|

जानकारी के अनुसार मुरादाबाद के पंडित नगला निवासी रोहताश पुत्र हरदेव सिंह ने बिजली के दो नए कनेक्शन एक अपने नाम और एक अपने पिता जी के  नाम से लगवाने के लिये आवेदन किया था जिसकी फाइल पर जे. ई. महोदय के हस्ताक्षर होने थे जिसके बाद रसीद कटनी थी| लेकिन विभाग के कई चक्कर लगाने के बाद जब उपभोगता ने जे. ई. से संपर्क किया तो उन्होंने प्रतिएक फाइल के बदले ५०० रूपये की मांग रख दी| गरीबी की दुहाई देने के बाद भी जे.ई. साहब का दिल नहीं पसीजा और यहाँ तक कह डाला की जब तक पैसे नहीं दोगो तब तक हस्ताक्षर नहीं नहीं करूँगा| थोडा सीधे किस्म के इस उपभोगता ने थक हार कर आखिर १००० रूपये इन साहब को दे डाले तब जा कर हस्ताक्षर हो पाया| लेकिन इस उपभोगता की मुश्किलें यही ख़तम नहीं हुई| 

आज 11 अप्रैल को  रसीद कटवाने मुरादाबाद के सीतापुरी बिजली घर में जब ये उपभोगता पंहुचा तो इससे दो कनेक्शन के नाम पर 6600 रूपये मांगे जाने लगे जबकि सरकारी खाते में कुल जमा की जाने वाली दो कनेक्शन की धनराशी 5500 रूपये बनती है| इस सन्दर्भ में जब उपभोगता ने इसकी शिकायत सीतापुरी बिजली घर में बैठे एस.डी.ओ से की तो उनका जवाब भी संतुष्टि वाला नहीं दिखा और उसे यह कर कर टाल दिया की "जा कर बाबू से बात करो" मतलब जिस बाबू की शिकायत लेकर पंहुचा उसी से मिलने के लिये बोल दिया गया| एस.डी.ओ. द्वारा कारवाही करने के बजाये उस पर पर्दा डालना एक सवालिया निशान खड़ा करता है की कही ये भी इस खेल में शामिल ना हो|

जब इस मामले की सूचना मिली तो विभाग के आला अधिकारी से संपर्क साधा गया और इस सन्दर्भ में बात की गई जिसके बाद वही सीतापुरी सब स्टेशन पर बैठे एस डी.ओ. थोडा बदले अंदाज़ में दिखे और 5500 रूपये ही जमा करने को कहा| हालाँकि बड़े अधिकारियों से की गई शिकायत पर एस डी.ओ थोडा भड़क ज़रूर गये थे उन्होंने उपभोगता से यहाँ तक कह डाला की अगर प्रधानमंत्री का नंबर मिल जाये तो क्या उन्हें भी फ़ोन करवा दोगे| एस डी.ओ साहब की इस बात से साफ़ पता चल रहा है की उन्हें पहले से ही इस सुविधा शुल्क की लेने की जानकारी थी क्यूकी फ़ौरन की गई शिकायत के बाद भी उस कथित बाबू और जे.ई  से कोई पूछताछ नहीं की गई| बहरहाल एक गरीब के पैसे तो बच गये लेकिन आये दिन ना जाने कितने उपभोगता ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों के चंगुल में पड़ कर अपने पैसे बेवजह गवां रहे होंगे और अधिकारी मज़े ले रहे होंगे|

Friday, April 1, 2011

वाणिज्य कर विभाग में खुले आम वसूला जा रहा सुविधा शुल्क !

मुरादाबाद : मुरादाबाद के वाणिज्य कर विभाग में खुले आम वसूला जा रहा सुविधा शुल्क! या यूँ कहे की जबरन किसी भी काम के एवज में वसूले जा रहे है पैसे | ऊपर से नीचे तक यानी चपरासी तक पैसे लेने में कोई कसर नहीं छोड़ते दिख रहे|  व्यापारी परेशान जाये तो जाये कहाँ.. न चाहते हुए भी उन्हें इनकी मनमानी पर देने पड़ रहे है पैसे|

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक मुरादाबाद के वाणिज्य कर विभाग में कर्मचारियों द्वारा खुल कर सुविधा शुल्क लेने का दौर चल रहा है| इस सन्दर्भ में थोड़ी पड़ताल करने के बाद जो तथ्य सामने आये इन्हें जान कर आपको भी हैरत ही होगी कि किस प्रकार जबरन सुविधाशुल्क लेने का खेल चल रहा है | गौरतलब है की एक सख्त कानून के अंतर्गत प्रदेश के बाहर से फॉर्म-३८(आयात घोषणा-पत्र) द्वारा मॉल मंगाने का प्रावधान है इसके अभाव में कोई भी व्यापारी माल नहीं मंगा सकता है | शायेद इसलिए इस फॉर्म की डिमांड भी कुछ अधिक होती है| आये दिन विभाग में इस तरह के फॉर्म का न मिल पाना चर्चा का विषय बनता रहा है| जानकारी के अनुसार विभाग से मिलने वाले फॉर्म-३८(आयात घोषणा-पत्र) के लिए व्यापारी को पूर्व में लिए गए फॉर्म के ब्योरे के साथ एक प्रार्थना पत्र देना होता है जिसपर ये लिखना होता है की फॉर्म किस मद के लिये लिया जा रहा है| इसके बाद इस प्रार्थना पत्र को उसी कार्यालय में बैठे एक बाबू के पास जमा किया जाता है जिस पर एक रिपोर्ट लगनी होती है जिसके बदले में बाबू महोदय अपना मुह खोलते हुए १०० रूपये सिर्फ इसलिए लेते है की इस पर रिपोर्ट लगनी होती है हालाँकि अभी हाल ही में महंगाई को देखते हुए या यूँ कहे की जादा की आस में अब रिपोर्ट लगाने की सुविधा शुल्क में भी इजाफा हुआ है जिसके लिए अब १०० रूपये की जगह २०० रूपये खुले रूप से मांगे जा रहे है| अब बात करते है उससे बड़े अधिकारी  यानी बड़े बाबू की जहाँ से फॉर्म प्राप्त किया जाता है| यहाँ पर ये  महोदय भी फॉर्म के नाम पर सुविधा शुल्क लेने में कोई कसर नहीं छोड़ते है| प्रतिएक फॉर्म के बदले ५० से १०० रूपये इन्हें भी सुविधा शुल्क के तौर पर देने पड़ते है| इसके बाद भी विभाग में बैठे छोटे कर्मचारी (चपरासी) भी कोई मौका नहीं गंवाते फॉर्म पर मोहर लगाने के नाम पर ये भी कम से कम २० रूपये तो लेते ही है| फॉर्म-सी, और फॉर्म-एच लेने के लिए भी इसी प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है और इसी तरह सुविधा शुल्क देना पड़ता है| मज़े की बात तो ये है की इसकी शिकायत करने में किसी ने भी हिम्मत नहीं दिखाई है | वैसे इस प्रकार के सुविधाशुल्क लेने की शिकायत भी लोग इस डर से नहीं करते की बराबर के कमरे  में  असिस्टेंट  कमिश्नर के बैठे होने के बावजूद ये लोग खुले रूप से ऐसा कर रहे है जैसे की बड़े अधिकारी इस सुविधा शुल्क के खेल से वाकिफ है, शायद शिकायत न करने की एक वजह ये भी हो सकती है| दूसरी वजह ये निकल कर आती है की शिकायत करने के बाद कही उनके फॉर्म या अन्य कागजात में कमी निकाल कर उन्हें परेशान न किया जाने लगे| बहरहाल सुविधा शुल्क लेने का दौर यहीं ख़तम नहीं होता माल मांगने के बाद फॉर्म को जमा कर रसीद लेने के बदले में भी कम्पूटर पर बैठे कर्मचारी को भी २० रूपये देने पड़ते है जिसके बाद रसीद दी जाती है |
हालाँकि अब विभाग द्वारा फॉर्म की किल्लत होने की वजह से व्यापारी को घर बैठे ऑनलाइन फॉर्म-३८ (आयात घोषणा-पत्र)  निकालने की सुविधा प्रदान कर दी गई है| जिससे काफी हद तक लोगो को राहत मिलने की सम्भावना है साथ ही चल रहे सुविधा शुल्क के खेल से भी निजात मिलेगी |

Wednesday, March 16, 2011

कब तक बुराइयों से लड़ने वाले मौत के मुह में जाते रहेंगे?

Writer-Imran Zaheer
कब तक बुराइयों से लड़ने वाले मौत के मुह में जाते रहेंगे? कितने दुःख की बात है की आज समाज को आइना दिखने वाले समाज के सजग प्रहरी और कलम के सिपाहियों को मौत के घात उतार दिया जा रहा है या फिर उनपर जानलेवा हमला किया जा रहा है | समाज में कलम के सिपाही लोगो को सही रास्ता दिखाने का काम करते है और समाज में फैली बुराइयों को आमजन तक पंहुचा कर अच्छे बुरे की पहचान कराते है, लेकिन आज उनकी मौत की खबर हो या उनपर जानलेवा हमला हो रहा हो ऐसी खबरे आये दिन अखबारों/मीडिया में सुर्खियाँ बनती नज़र आती है| 
पिछले दिनों काफी चर्चा में रहे एक नक्सली नेता के साथ  एक पत्रकार को भी  गोली का निशाना बना  कर पुलिस ने अपनी कायरता  का परिचय दिया था| इस तरह कलम के सिपाही को मौत के घात उतारने वालो की हरकत और मंशा सिर्फ एक नज़र आती है की इन कथित पुलिस वालो ने कही न कही से अपनी दुश्मनी एक पत्रकार से भी निकाली है जो इन भ्रस्टाचार के दलदल में डुबकियाँ लगा रहे बेलगाम पुलिस वालो के गलत कारनामों को उजागर कर समाज  के सामने ला कर खड़ा करता है| अभी हाल ही में गाजीपुर जिले में दैनिक आज के फोटोग्राफर गुलाब राय पर फोटो खीचे जाने की वजह से हमला बोल दिया गया| आइये  मीडिया में प्रकाशित कुछ हेडिंग पर नज़र डालते है " फोटोग्राफर पर हमला : आरोपियों की गिरफ्तारी में निष्क्रियता दिखा रही पुलिस ,  प्रेस क्‍लब अध्‍यक्ष के साथ मारपीट, तीन हिरासत में,  एटा में बेलगाम पुलिस ने की दो फोटोग्राफरों की पिटाई,  बीबीसी के तीन पत्रकारों को बंधक बनाकर पीटा गया ,  रिपोर्टर नरेश कुमार सहगल पर हमले के मामले में कोई कार्यवाही नहीं!,  हजारीबाग में तीन मीडियाकर्मियों से मारपीट, कैमरे छीने गए,  बसपा विधायक के गुर्गों ने चार पत्रकारों को पेड़ से बांधकर पीटा,  चैनल के एडिटर को बिल्‍डर ने दी जान से मारने की धमकी,  सीबीआई करेगी पत्रकार सुशील पाठक हत्‍याकांड की जांच,  (ये सभी रिपोर्ट bhad4media में प्रकाशित) ऐसी ही सैकड़ो दुखद खबरे ना जाने कितने अखबारों और चैनलों में आये दिन सुर्खियाँ बनती नज़र आती है| क्या ऐसे में बुराइयों से लड़ने वाले इन कलम के सिपाहियों को कलम चलाना छोड़ देना चाहिए? आज इस समाज में कलम के सिपाहियों की हत्या की जा रही है क्यों? क्या सिर्फ इस कारण कि वह समाज में फैली बुराईयों  को जड़ से ख़त्म  करने की कोशिश करता है इसलिए? लोगो को उनके अधिकार से परिचय  कराता है इसलिए? और समाज में फैली बुराइयों  को मिटाने और भ्रस्टाचार को उखाड़ फेंकने वाला ही इन पुलिस वालो की गोली का निशाना बन जाता है!  या फिर किसी और के द्वारा ऐसे पत्रकारों को गोली मार दी जाती है, जो समाज से बुराई को जड़ से ख़त्म  करने के लिए अपनी ज़िन्दगी  कि परवाह किये बगैर जी तोड़ कोशिश करता है| 
ऐसा कब तक चलता रहेगा  कब तक बुराइयों से लड़ने वाले मौत के मुह में जाते रहेंगे?  आज इस भ्रष्ट समाज में कोई भी पत्रकार सुरक्षित क्यों नहीं है? उनकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी लेने वाले लोग ही  उनकी हत्या क्यों कर रहे है? समाज के इस सजग प्रहरी की सुरक्षा के प्रति सरकार संवेदनशील क्यों नहीं हो रही  है? ऐसे तमाम सवाल हर पत्रकार के दिमाग में गूँज रहे है जो इस समाज में फैली तमाम बुराइयों को जड़ से ख़त्म  करने और भ्रष्ट लोगो को बेनकाब करने के लिये जोखिम उठाने के साथ साथ समाज को एक सही दिशा में ले जाने का प्रयास करते है| लेकिन पत्रकारों के मारे जाने में पत्रकार समाज भी कम दोषी नहीं है वह इसलिए कि पत्रकार ही अपने साथी के मारे जाने के बाद एक दो ज्ञापन धरना प्रदर्शन करने के बाद खामोश हो जाता है अब हमें जागने और अपने सोये हुये साथियों को जगाने कि ज़रुरत है हमें ज़रुरत है अपनी ताक़त को पहचानने कि हमें अब अपनी खामोशी को तोड़ने और ज़ुल्म और ज्यादती के खिलाफ लड़ना पड़ेगा तभी हम सुरक्षित रह पायेंगे और अगर हम इसी तरह खामोश तमाशबीन बने रहे तो इसी तरह से मारे जाते रहेंगे और अपने साथी  की  मौत पर दो मिनट  का मौन रख कर स्रंधांजलि देने के साथ साथ खुद की दुखद खबरों से अखबारों में सुर्खिया बनते रहेंगे!

Monday, March 7, 2011

यहाँ मौत बिकती है, बोलो खरीदोगो ?

यहाँ मौत बिकती है, बोलो खरीदोगो ? आइये नजर डालते है समाज में बिक रही उन नशीली मौतों की जो खुले आम बेचीं जा रही है ऐसी मौत जो ना किसी बन्दूक की गोली से ना किसी हादसे से होती है बल्कि ऐसी मौत जो खरीदी जाती है, जिसे बेचती है सरकार वो भी डंके की चोट पर| सरकार द्वारा जनहित में जारी विज्ञापन से इसके दुष्परिणाम को बता कर लोगो को मौत के मुह में जाने से नहीं रोका जा सकता , ये प्रयास तब तक  सफल नहीं हो सकता जब तक ऐसे नशीले पदार्थो पर पूर्ण रूप से प्रतिबन्ध नहीं लगा दिया जाता |
हमारी सरकार के भी क्या कहने हाल ही में गुटखो तम्बाकू की बिक्री पर रोक लगाने के बजाये प्लास्टिक पाउच में बेचने पर प्रतिबन्ध लगा दिया| ऐसे में सरकार क्या साबित करना चाहती है ये सरकार ही जाने| चलिए बात करते है उन मौतों की जो तम्बाकू के सेवन से होती है, सरकार द्वारा इसके दुष-परिणामो की जानकारी एक विज्ञापन के द्वारा लोगो तक पहुचाई जा रही है, और इसका  सेवन ना करने की सलाह लगातार दी जा रही वहीँ दूसरी तरफ इसे खुले आम बेचा भी जा रहा| सोचनिये है की जिस पदार्थ/सामग्री से लोगो को कैंसर की बिमारी होने की जानकारी दी जा रही है वहीँ दूसरी तरफ  ऐसे पदार्थ/सामग्री को खुले आम बेचने की अनुमति क्यों है? होना तो ये चाहिए था की अगर ऐसी सामग्री से लोगो की जान जाती है तो उस पर  पूर्ण रूप से प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए ना की टीवी और अखबारों में विज्ञापन देना चाहिए की इसका सेवन ना करे|  और तो और सरकार ने  तम्बाकू और सिगरेट की पैकेट पर बिच्छु जैसी आकृति के साथ ये शब्द " तम्बाकू जानलेवा है, तम्बाकू से कैंसर हो सकता है " को प्रदर्शित करना अनिवार्य कर दिया  सरकार को लगता है की ऐसी आकृति और जानलेवा शब्द के प्रदर्शित करने से लोग इसका सेवन नहीं करेंगे| वही सुप्रीम कोर्ट ने अब प्लास्टिक के  पाउच में  गुटको/तम्बाकू की बिक्री पर पूर्ण रूप से प्रतिबन्ध भी लगा दिया है | लेकिन एक बात सोचने पर मजबूर करती है कि सरकार द्वारा इस तरह मौत बेचने की अनुमति देने की कमज़ोरी क्या है? 
आज ना जाने कितने लोग तम्बाकू के सेवन से ज़िन्दगी और मौत से जूझ रहे है लेकिन हमारी सरकार सिर्फ विज्ञापन से लोगो को इसका प्रयोग ना करने की सलाह देने में आगे है| सबसे अधिक इसके सेवन से गरीब मरते है| हमारे शराब माफियाओं की मेहरबानी के क्या कहने  एक तो  शराब  पहले से ही जानलेवा है उसके बाद उसमे भी मिलावट  कर उसे और ज़हरीला बना दिया जा रहा जिससे आये दिन ना जाने कितने लोगो की मौत हो रही है |
विभिन्य टेलीविजन चैनल पर रोज़ आने वाले विज्ञापन पर नज़र डाले तो कोई भी उस विज्ञापन को देख कर कह सकता है की सच में तम्बाकू का सेवन कितना खतरनाक है| हालाँकि घरो में इस विज्ञापन का असर भी देखने को मिला है जिसके बाद कुछ लोगो ने इस मुसीबत से छुटकारा पा लिया वही कुछ इसका सेवन नियमित रूप से कर रहे है कुछ का कहना है की अगर ऐसे पदार्थ मार्केट में ना बेचे जाये तो संभव है की इस तम्बाकू से छुटकारा मिल सकेगा, लेकिन मार्केट में हर दस कदम की दूरी पर बिकने वाले तम्बाकू को देख कर ही अमल लगने लगता है और ना चाहते हुए भी इसका सेवन करना पड़ता है | देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने एक मार्च से गुटखे के प्लास्टिक पाउच में उत्पादन तथा बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है लेकिन इसके बावजूद अब तक इसकी बिक्री पर कोई रोक नहीं लगाईं जा सकी है| कुछ फुटकर दुकानदारों कि माने तो उनके पास प्लास्टिक पाउच में मौजूद  गुटखो/तम्बाकू का काफी स्टॉक है| कुछ दुकानदारों का कहना है कि वितरण करने वाले को इसे वापस करने के लिये कहा गया तो उन्होंने असहमति जाता दी और वापस लेने से मान कर दिया जिसकी वजह से छोटे और फुटकर दुकानदार इसे बेचने में अपनी मजबूरी समझते है| वहीँ प्रशासन कि तरफ से अभी तक किसी भी दबाव के ना आने पर इसकी बिक्री पर कोई असर नहीं पड़ा है और खुले आम इसे बेचा जा रहा है |
बहरहाल देखना ये है की सरकार ऐसे ज़हरीले पदार्थो पर प्रतिबन्ध कब लगाती है? और इनसे हो रही मौतों को रोकती है | सरकार द्वारा जनहित में जारी विज्ञापन से इसके दुष्परिणाम को बता कर लोगो को मौत के मुह में जाने से नहीं रोका जा सकता , ये प्रयास तब तक  सफल नहीं हो सकता जब तक ऐसे नशीले पदार्थो पर पूर्ण रूप से प्रतिबन्ध नहीं लगा दिया जाता |

हम पर तरस खाओ...हम बच्चे है जानवर नहीं...!

मुरादाबाद , उत्तर प्रदेश: हम बच्चे है जानवर नहीं... शायद ये कथन इन बच्चो के मुह पर ज़रूर होगा इस तस्वीर से भली प्रकार से अंदाज़ा लगाया जा सकता है की आज स्कूल प्रबंधतंत्र को मासूम बच्चो की पीड़ा से नहीं वरन मोटी फीस से प्यार है|  बच्चो को जानवरों की तरह वाहनों में  इस तरह से ठूस ठूस कर भर कर ले जाना बेहद ही चिंता का विषय है| 
ऐसा ही नज़ारा रोज़ सुबह और स्कूल की छुट्टी के समय देखने को मिल जायेगा| ऐसा नहीं है की इस नज़ारे से स्कूल प्रबंधतंत्र वाकिफ नहीं है| प्रतिदिन बच्चो को जानवरों की तरह भर कर स्कूल तक छोड़ने वाले वाहन स्कूल के अन्दर तक अपने वाहनों को ले जाते है ऐसे में इस स्कूल के द्वारा आंखे मूंदे रहना एक सवालिया निशान खड़ा करता है की आखिर इस पर कोई कारवाही क्यों नहीं की जा रही| दूसरी तरफ महगाई और बढ़ते पेट्रोल के दाम से आज स्कूल जाने वाले बच्चे भी सुरक्षित  नहीं है, मुरादाबाद में बच्चो को स्कूल तक पहुचाने वाले अधिकतर  वाहन पेट्रोल की जगह घरेलु गैस  सिलेंडर का उपयोग कर रहे है जो बच्चो की सुरक्षा  की दृष्टि से बेहद खतरनाक है| आज अभिभावक भी इसके लिये कम ज़िम्मेदार नहीं है जो कम पैसो में अपने बच्चो को स्कूल ले जाने वाले वाहन को तय करने में अधिक तरजीह देते है | अधिकतर देखा गया है और समाचार पत्रों में सुर्खियाँ भी बनती हुई खबर प्रकाशित होती है की स्कूल वैन में आग लगी, तह तक जाने में पता चला की उस वाहन में घरेलु  गैस लगी होने की वजह से ऐसा दर्दनाक हादसा हुआ | उसके बाद भी  छोटे-छोटे बच्चो की ज़िन्दगी से खिलवाड़ करने वाले वाहन स्वामी को इस बात से ज़रा भी फर्क नहीं पड़ता की पैसो की कमाई करने की होड़ में वो नौनिहालों की ज़िन्दगी से खेल रहे है साथ ही आज स्कूल के वाहनों में बच्चो की संख्या उस वाहन की क्षमता से काफी अधिक होती है ऐसे में स्कूल  का प्रबंध तंत्र भी आंखे मूंदे रहता है जैसे उसे कुछ पता ही नहीं| ताज्जुब वाली बात है की सडको पर ठूस ठूस कर वाहनों से स्कूल तक ले जाये जा रहे बच्चो पर पुलिस की दृष्टि भी नहीं पड़ती|

Sunday, February 20, 2011

फ्रेंडशिप क्लब बनाम टेलीफोनिक वैश्यावृति !

आप अकेले है...? मन उदास रहता है...? कोई महिला दोस्त नहीं है....? किसी लड़की को दोस्त बनाना चाहते है..? तो देर किस बात की नीचे लिखे फ़ोन नंबर पर किसी भी उमर के युवक और युवतिया कॉल करें|  ऐसे ही तमाम विज्ञापन आपको रोज़ समाचार पत्रों में देखने को मिलेगा| दरअसल ये एक व्यापार है जो फ़ोन काल करने वाले से उसकी बात करने के दौरान लिये गए काल चार्जेज पर चलता है इनके द्वारा दिए गए फ़ोन नंबर पे काल करने पर आपको इंटरनेशनल/ एसटीडी  काल का चार्ज देना पड़ेगा| फ्रेंडशिप क्लब के नाम पर चल रहा ये व्यापार पूरी तरह फ़ोन काल पर ही  निर्भर होता है, लेकिन आज अधिकतर फ्रेंडशिप क्लब इस व्यापार को गलत दिशा में ले जा रहे है,जिसे एक तरह से हम टेलीफोनिक वैश्यावृति का भी नाम दे सकते है|
मनमोहक आवाज़ और सुरीले शब्दों से अपनी तरफ आकर्षित करने वाला ये एक ऐसा व्यवसाय है जिसके आधार पर युवा वर्ग को अपनी तरफ खीचने के लिये फ़ोन काल करने और मेम्बर बनाए जाने के एवज में मोटी रकम का भुगतान करने के लिये प्रेरित किया जाता है|  यदि आप एक युवक है तो आपकी काल को एक युवती द्वारा रिसीव किया जाएगा, किसी युवती ने काल किया तो उसकी काल युवक को ट्रांसफर कर दी जाती है, फिर शुरू होता है बात चीत का दौर आपसे मनमोहक अंदाज़ में जीवन से जुडी हर उस बात का ज़िक्र किया जाता है जो कही न कही से पुरुष और महिला के आपसी और करीबी रिश्तो के सम्बंध से मतलब रखता है, यूँ तो विज्ञापन में सिर्फ दोस्ती करने के इच्छुक युवाओं को आमंत्रित किया जाता है लेकिन आज न जाने कितने क्लब खुल चुके है जो इसके नाम पर गलत धंधा भी चलाने लगे है जिसे हम टेलीफोनिक वैश्यावृति का भी नाम दे सकते है क्यूंकि आज बहुत से ऐसे फ्रेंडशिप क्लब आपस में दोस्ती करवाने के नाम पर लोगो से मेंबरशिप शुल्क भी मांगने लगे है, काल करने वाले को शुल्क जमा करने के लिये एक अकाउंट नंबर दिया जाता है जिसमे मेंबरशिप शुल्क जमा करने को कहा जाता है,जिसके बदले में आपको युवतीयों के फ़ोन नंबर भी उपलब्ध करा दिए जाते है या यूँ  कहे की आपको उस  युवती से किसी भी तरह की बात करने की आजादी दी जाती है| ऐसे क्लबों में युवको को आकर्षित करने के लिये प्यार मोहब्बत के साथ साथ पुरुष महिला के आपसी संबंधो पर बात करने पर अधिक जोर दिया जाता है जिससे लोग आकर्षित हो कर दुबारा काल करे|  इस प्रकार के क्लबो से युवा पीढ़ी अधिक आकर्षित हो कर पुनः काल करती है जो इन्हें गलत दिशा में ले जाती है | दूसरी तरफ आज हमारे समाज में ऐसे क्लबो द्वारा फैलाये गये वायरस से युवा पीढ़ी पर बुरा असर पड़ा है जिसकी मिसाल राह चलते फ़ोन पर बात कर रहे युवा युवती को देखा जा सकता है, दिन हो या रात घर की छतो पर घंटो फ़ोन पर बात करने का नज़ारा देखने को मिल ही जायेगा| वहीँ रही सही कसर हमारे मोबाइल कंपनियों ने सस्ती काल कर के पूरी कर दी है| एक दौर था जब लोग सन्देश भेजने के लिये कबूतर उड़ाया करते थे लेकिन आज सबकुछ बदल गया टेलिकॉम छेत्र में इतना बदलाव आ गया की इसका बुरा असर युवा वर्ग पर कुछ अधिक पड़ा है | बहरहाल सोचना ये है की क्या समाज में खुले रूप से चल रहे ऐसे क्लबो को आजादी देना उचित है?

Sunday, February 13, 2011

मुरादाबाद न्यूज़: स्वास्थ्य विभाग की मिली भगत से दांतों पर आफत !

मुरादाबाद : दांतों का इलाज या दांतों से दुश्मनी..! गरीबी एक ऐसा श्राप है जिसके कारण लोग कभी कभी ऐसे नुक्सान में पड़ जाते है जिसे संभालना काफी मुश्किल होता है| एक तरफ बेरोजगारी तो दूसरी तरफ इसके नुक्सान भी गजब ढहा  रहे है | चलिए आपको ले चलते है मुरादाबाद के बिलारी छेत्र में जहाँ रोड पर खुले आम झोला छाप दांत के डॉक्टर अपनी रोज़ी रोटी चलाने के साथ साथ उन गरीब लोगो के दांत के साथ खिलवाड़ करते पाए गये जिनके पास ना तो इतना पैसा है और ना ही समझ की वो किस्से इलाज करावा रहे है|
यूँ तो झोला छाप डॉक्टरों पर स्वास्थ्य विभाग द्वारा अभियान भी चलाया जाता  है लेकिन चंद समय के लिये चलाये जा रहे  ऐसे अभियान से साफ़ पता चलता है की विभाग द्वारा खानापूर्ति के साथ इन झोला छाप डॉक्टरों से मिलीभगत है | बिलारी में सडको पर अपनी दूकान सजा कर बैठे ऐसे डॉक्टर खुल्ले में दांतों का इलाज इस प्रकार करते नज़र आते है जैसे कोई नाई किसी के बाल काट रहा हो| ज़्यादातर ऐसे डॉक्टर दांतों की बिमारी से पीड़ित लोगो का सीधे सीधे दांत उखाड़ लेने की सलाह देते है क्यूकी यही काम इनके लिये सबसे आसान होता है सबसे ताज्जुब वाली बात ऐसे झोला छाप डॉक्टरों के पास जबड़ो को सुन्न करने वाला इंजेकशन भी मौजूद होता है जिसके सहारे से ये दांतों को उखाड़ने का काम करते है| दांतों की सफाई में प्रयोग किया जाने वाला पदार्थ में तेज़ाब की मात्रा का अंदेशा भी सहज ही लगाया जा सकता है  क्यूकी लोगो के अनुसार इन झोला छाप डॉक्टर से दांत की सफाई के कुछ समय के पश्चात दांतों का रंग काला पढने लगता है| और तो और  खुले रूप से चल रहे  इनके दवाखानो पर लगे बड़े बड़े बोर्ड पर गौर किया जाये तो उसपर कोई डिग्री भी नहीं लिखी होती,उसके  बाद भी स्वास्थ्य विभाग का अपनी आंखे मूंदे रखना इन्हें भी संदेह के घेरे में ला खड़ा करता है |
बहरहाल अगर हमारे समाज के गरीब और भोले भाले लोग इन के चंगुल में फसते  है तो इसके लिये सीधे तौर पर स्वास्थ्य विभाग ज़िम्मेदार है |खुले रूप से चल रहे ऐसे दवाखाने पर शिकंजा कसने के बजाये विभाग द्वारा छूट देने का एक ही मतलब निकाला जा सकता है की विभाग से इनकी मिली भगत है जो सस्ते इलाज के नाम पर लोगो के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे  है | इन्हें रोकने के लिये देखते है विभाग कब तक प्रयास करता है और कब अपनी जिम्मेदारियों को समझता है|

Thursday, February 3, 2011

बच्ची की जान जोखिम में डाल कर रोटी का इंतज़ाम !

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश: दो जून की रोटी के लिये खतरों का खेल| ये तस्वीर बयान करती है उस गरीबी और भूख का जिसके लिये कोई कुछ भी कर सकता है, लेकिन मुद्दा ये है की क्या एक २.५  वर्षीय बच्ची की जान जोखिम में डाल  कर रोटी का इंतज़ाम करने वालो को ऐसी रोटी रास आएगी? सबसे हैरान करने वाली बात ये है की हमारे देश में ऐसे लोग मौजूद है जो ऐसे खेल को देख कर तालियाँ  बजाते नज़र आते है ना की ऐसे जोखिम भरे खेल का विरोध करते हुए| 
अभी हाल ही में मुरादाबाद के दस सराये पुलिस चौकी के ठीक सामने एक २.५ वर्षीय बच्ची द्वारा ऐसा ही  जानलेवा खेल को अंजाम दिया जा रहा था  लोगो की भीड़ उसके इस काम के लिये तालियाँ बजाती नज़र आ रही थी,वही पुलिस कर्मी इसे बड़े मज़े से देखते हुए अपना मनोरंजन कर रहे थे| एक छोटी बच्ची द्वारा एक पतली रस्सी पर हवा में चलने का खेल देख कर हर किसी को ये डर भी था कही ये बच्ची गिर ना जाये लेकिन किसी ने ना तो इसका विरोध  किया और ना ही हमारे पुलिस कर्मी ने उसे रोका| एक मासूम की जान जोखिम में डाल कर दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ करने वाले उसके परिजन भी उसके हौसला अफजाई  के लिये उसका तालियों से स्वागत करते हुए नज़र आ रहे थे| हट्ठे-कट्ठे परिजन को देख कर कोई भी कह सकता था की एक मासूम की जान जोखिम में डाल कर ऐसी रोटी कमाने वाला उस बच्ची का हितैषी नहीं हो सकता|

Sunday, January 30, 2011

बिजली विभाग रसूख वालो से नहीं वसूल पा रहा बकाया राशि!

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश : मुख्यमंत्री  मायावती के आगमन के मद्देनज़र जहाँ हर विभाग में भी खलबली मची हुई है वही बिजली विभाग ने बकायादारो से बिजली की बकाया राशि जमा करने और बकायादारों  का बिजली का कनेक्शन काटने में भी तेज़ी दिखाई है | लेकिन यहाँ बकायादारों की बिजली काटने में विभाग ने बकायादारों की  दो श्रेणी बनायीं है, पहला ऐसे बकायादार जिनका अपने एरिया में रुतबा और किसी ना किसी राजनैतिक पार्टी से सम्बंध है उनके लिये रियायत बरती है वही दूसरी श्रेणी जिनका ना कोई रुतबा है और ना ही कोई रसूख उनका बिजली का बकाया होने पर बिजली काट दी जा रही है| 
    
मुरादाबाद के पीतल नगरी छेत्र में कुछ ऐसा ही मामला  प्रकाश में आया  है जहा पर रुत्बो और रसूख वाले लोगो को बकायादार की सूची में रियायत बरती गई है, वही बिना रसूख वाले आम लोगो को किसी भी तरह की कोई रियायत नहीं बरती गई| हालाँकि नियम और कानून सभी के लिये एक है लेकिन यहाँ पर नियम और कानून की अनदेखी की जा रही है| 

आज दिनांक ३० जनवरी को बकायादारो के बिजली कनेक्शन काटने के लिये बिजली विभाग की टीम पीतल नगरी के सूरज नगर में पहुची और बकायेदारों  के कनेक्शन काटने का काम करने लगी| बकायादारों की श्रेणी में श्रीमती ओमवती पत्नी गिरधर सिंह (कनेक्शन संख्या १३१३०२ बुक संख्या ३८८५) जिसका बकाया ४९३९ रूपये था का बिजली का कनेक्शन काट  दिया गया| जबकि वही उसके घर से महज़ २० कदम पे एक बकायेदार अमित शर्मा ( कनेक्शन संख्या १२२४८८ बुक संख्या ३८८४ ) का बकाया २५९९६ रूपये था जिनका  बिजली का कनेक्शन नहीं कटा गया| इतने बड़े बकायेदार का कनेक्शन ना काटे जाने की वजह पता करने पर मालूम हुआ की  अमित शर्मा  का भाई राहुल शर्मा  भाजपा का सभासद है और राजनीति में रसूख रखता है जिसकी वजह से विभाग ने उसका कनेक्शन काटने की हिम्मत नहीं की| 

सूत्रों की माने तो बिजली विभाग द्वारा कई बार इस कनेक्शन को काटने के लिये प्रयास भी किया गया लेकिन राजनितिक दबाव के कारण ना तो कनेक्शन को काटा जा सका और ना ही वसूली की सकी | वहीँ दूसरी  तरफ  बिजली विभाग के कर्मचारियों के पास मौजूद लिस्ट के मुताबिक़ सैकड़ो की संख्या में बकायेदारों का ब्योरा मौजूद था जिसका आंकलन करने पर बकाया तकरीबन लाखो रूपये में पाया गया| जहा एक तरफ विभाग बिजली चोरी से निबटने और बकायेदारों से वसूली करने में मुस्तैद रहा  वही दूसरी तरफ बड़े बकायेदारो और रसूख वाले लोगो से  वसूली करने में असहाय दिखा| देखना ये है की विभाग कब तक ऐसे लोगो को छूट देता रहेगा और कब तक राजनैतिक दबाव में नियम और कानून की धज्जियाँ उडाता रहेगा|

Thursday, January 27, 2011

अधिकारी भगवान् से नहीं माया से डरते है!

मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) : अधिकारी भगवान् से नहीं माया से डरते है! जी हाँ, ये बात सोलह आने सच है की यहाँ के प्रशासनिक अधिकारी भगवान् से नहीं जबकि मुख्यमंत्री मायावती से डरते है| 
आइये प्रकाश डालते ही मुख्यमंत्री मायावती के २ फरवरी के मुरादाबाद दौरे के मद्देनज़र अधिकारियों के बीच उस खौफ का जो साबित करता है की भगवान से बड़ा खौफ माया का है|
मुख्यमंत्री मायावती के २ फरवरी के दौरे के मद्देनज़र जिला अस्पताल का निरिक्षण कर रहे मंडलायुक्त एल वेंकटेश्वर लू ने सभी रोगियों को नाश्ता और दो वक़्त का खाना देने का निर्देश दिया| बता दे की अभी तक जिला अस्पताल में ऐसी वयवस्था के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति ही की जा रही थी| इस निर्देश के बाद सभी रोगियों के मुख पर एक ही शब्द थे...काश ऐसा रोज़ हो पाता और रोज़ मायावती का दौरा होता..| ऐसे निर्देश पर सवालिया निशान खड़ा होता है की मुख्यमंत्री के दौरे के समय ही सुचारू वयवस्था बनाने में जुटे प्रशासन ने इसकी सुध पहले क्यों नहीं ली? सरकारी कार्यालय में जहा एक तरफ कर्मचारी गैर हाजरी और देर से  आने में रिकॉर्ड तोड़ चुके हो वो अवकाश के दिन भी यहाँ की वयवस्था को सुचारू बनाने की जी तोड़ कोशिश करते नज़र आये| जगह-जगह  टूटी सडको की मरम्मत में तेज़ी के साथ काम भी किया जा रहा| शहर के करुला छेत्र में दिन के समय ही सड़क की मरम्मत का कार्य किये जाने की वजह से लोगो को जाम का सामना करना पड़ा| लेकिन काम की तेज़ी और मुख्यमंत्री  के आगमन के मद्देनज़र उसी जाम में काम को पूरा किया जाता रहा| वही सड़क के डीवाइडर को जैसे तैसे रंगने और सवारने का काम भी किया जा रहा है | हालाँकि इस तरह की रंगाई का कोई वजूद नहीं है कुछ दिनों में ये उसी हालत में होंगी जैसी हमेशा हुआ करती है| जगह जगह सफाई पर भी विशेष ध्यान देने के साथ साथ मंडल को चमकाने में लगे अधिकारी हर उस जगह का मुयायना करने में लगे है जहा व्यवस्थाओं की कमी है|  जिस तरह अधिकारियो के माथे से पसीना छूट रहा है और जिस तरह मंडल में सुचारू वयवस्था बनाने में अधिकारी जुटे है इसे देख कर यही कहा जा सकता है की भगवान् से नहीं माया से डरता है प्रशासन|

Monday, January 10, 2011

गोरखपुर- IRCTC २४ प्रकार कि खाद्य सामग्री का लेखा जोखा और खाने को चोखा भी नहीं

गोरखपुर-उत्तर प्रदेश: रेलवे ने  जनता को  सस्ते खाने खिलाने का दावा तो किया लेकिन खिलाने के नाम पर कुछ नहीं दिया| गौर तलब है कि रेलवे ने IRCTC के माध्यम से जनता को सस्ते खाने देने का फैसला किया था और इसपे अमल भी हुआ लेकिन पूरी तरह से नहीं|
९ जनवरी को गोरखपुर रेलवे स्टेशन का दौरा किये जाने के बाद ये साफ़ हो गया कि जनता को सिर्फ बेवक़ूफ़ बनाया जा रहा, जन आहार मूल्य सूची कि माने तो कुल २४ प्रकार के खान पान का ब्यौरा प्रदर्शित किया गया है जिसमे आपको आपकी पसंद का कुछ भी खाने को नहीं मिलेगा| २४ प्रकार के खानपान में से आपको सिर्फ 3 या 4 प्रकार के मिलेंगे| 
सस्ते खाने कि आस लिये जब किसी यात्री ने irctc के जनाहार कि तरफ रुख किय तो मायूसी ही मिली बड़े बड़े बोर्ड पर २४ प्रकार कि खाद्य सामग्री का लेखा जोखा और खाने को चोखा भी नहीं| कुल मिला कर जनता को बेवक़ूफ़ बनाने में माहिर रेलवे कि irctc ने सिर्फ खानापूर्ति ही की है ना कि आपूर्ति| 

Sunday, January 2, 2011

हांड कंपा देने वाली ठण्ड से ठिठुरने को मजबूर लोग !

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश:  हांड कंपा देने वाली ठण्ड से ठिठुरने को मजबूर लोग| लगातार चल रही  सर्द हवा से मौसम ने अपना मिजाज़ बदल लिया जिसके चलते लोगो ने घर से बाहर निकलने में परहेज़ रखा वही दूसरी तरफ सूरज ने भी अपनी आंखे मूँद ली जिसके चलते लोग हांड कंपा देने वाली ठण्ड से बचने के लिये घरो में कैद रखना बेहतर समझा| रुक रुक कर हो रही हलकी बूंदा  बांदी ने भी ठण्ड बढ़ने में विशेष योगदान दिया है| www.accuweather.com  के अनुसार मुरादाबाद में कल अधिकतम तापमान १५ डिग्री सेल्सिअस और न्यूनतम ४ डिग्री सेल्सिअस रिकॉर्ड किया गया, जबकि आज सायं ५ बजे  का तापमान अधिकतम १७ डिग्री सेल्सिअस और न्यूनतम ५ डिग्री सेल्सिअस रिकॉर्ड किया गया| कल का तापमान के बाद आज भी लोगो को हांड कंपा देने वाली ठण्ड का सामना करना पड़ रहा है। रात तेज़ चल रही सर्द  हवाओं से लोग बेहाल दिखे| घने बादलो से सहज ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि आने वाले समय में स्थिति और बिगड़ सकती है| बाहरहाल रोज़मर्रा कि ज़िन्दगी जीने वालो के लिये ये ठण्ड मुसीबत साबित हो रही|