Tuesday, July 5, 2011

ये विद्यामंदिर है या पैसा लूटने वाले संस्थान?


देश में साक्षरता अभियान चलाने से क्या आज एक गरीब और माध्यम वर्गीय परिवार अपने बच्चो के उज्जवल भविष्य के लिये निश्चिन्त हो सकता है? ये एक ऐसा सवाल है जिसे ले कर तमाम ऐसे परिवार चिंतित है जो या तो गरीब है या फिर एक मध्यम श्रेणी से ताल्लुक रखते है| 

अपने बच्चो के उज्जवल भविष्य की राह देख रहे अधिकाँश परिवार आज चिंतित अवस्था में देखे जा सकते है वो भी सिर्फ इसलिए की वो अपने बच्चो को एक अच्छे स्कूल में पढ़ाने में असमर्थ है| स्कूलों की आसमान छूती फीस एक मध्यम परिवार और गरीब परिवार के बच्चो को बुलंदियों तक जाने से रोकने का का काम कर रही है | इन सब से बेखबर हमारी सरकार इन पर कोई शिकंजा कसने के बजाये चिर निंद्रा में सो रही है| हमारी सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता उस परिवार से जो अपने बच्चो को उच्य शिक्षा देने के लिये रात दिन कड़ी धूप में दो पैसो का इंतज़ाम करते है | लेकिन रात दिन की जाने वाली मेहनत से मिले पैसे भी उनके बच्चो को एक अच्छी शिक्षा दिलाने में नाकाफी है| सरकारी विद्यालय में पढाई के नाम पर खानापूर्ति के अलावा कुछ भी नहीं होता| स्कूल के समय में अध्यापको का सोना एक आम बात है | ऐसे में गरीब और मध्यम परिवार के बच्चो के भविष्य के बारे में सहज ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है की उनके भविष्य के साथ कितना घिनौना मज़ाक किया जा रहा है| 

ऐसे में एक ऐसा परिवार जिसकी आमदनी कम है लेकिन अपने बच्चो को एक अच्छे स्कूल में पढ़ाने का  जज्बा हो तो उसके इस अरमान पर पानी ही फिरेगा क्यूकी यहाँ अच्छे स्कूल में दाखिला से लेकर उनकी आसमान छूती फीस इन्हें निराश कर देती है| आईये नज़र डालते है एक इंग्लिश मीडियम दर्जे के स्कूल की जहाँ पर दाखिला से लेकर जमा कराई जा रही भारी भरकम फीस के ब्योरे पर| 
प्राइवेट स्कूल जो की आज कुकुरमुत्तो की तरह अपना पैर पसार रहे है जिनका उद्देश्य सिर्फ मोटी कमाई करना है ना की बच्चो के भविष्य के बारे में सोचना| आसमान छूती फीस से अमीरों की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता जबकि एक गरीब और मध्यम परिवार के लोग असहाय होते है अपने बच्चो को एक अच्छी शिक्षा दिलाने के लिये | ऐसे ही मध्यम परिवार की माने तो अपने बच्चो को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिये प्राइवेट स्कूल का दरवाज़ा देखना पड़ता है जहाँ पर दाखिले के लिये कम से कम एक मुश्त 5000 रूपये की रकम जमा कराई जाती है| इसके बाद स्कूल द्वारा ही महंगे ड्रेस उपलब्ध कराये जाते है जिसके लिये उन्हें अलग से पैसो की अदायगी करनी पड़ती है| स्कूल डायरी और आई कार्ड के नाम पर अलग से पैसे लिये जाते है| इतना कुछ होने के बाद भी प्राइवेट स्कूल का पेट नहीं भरता, इसके बाद विभिन्य विषय की किताबो को खरीदने के लिये एक तय किये हुए पुस्तक भण्डार पर जाने के लिये कहा जाता है जहाँ पर इनके स्कूल की किताब उपलब्ध होती है| सबसे हैरानी वाली बात की इन स्कूलों की किताब भी शहर के सिर्फ उस बुक स्टाल पर मिलती है जिनकी सूचना स्कूल द्वारा अभिभावकों को दी जाती है| चर्चा में हमेशा रहा है की इन स्कूलों को कमीशन  के नाम पर ऐसे बुक स्टाल मोटी रकम देने का काम करते है| अभी तक सिर्फ किताबो को खरीदने के लिये कहा जाता था लेकिन आज स्कूल का नाम प्रिंट की हुई मंहगी कापियों को भी खरीदने के लिये कहा जाता है ऐसा ना करने पर बच्चो को डांटा जाता है और स्कूल की प्रिंट की हुई कापी लाने को कहा जाता है| चलिए अब बात करते है हर महीने जमा कराई जा रही फीस के बारे में, कुछ प्राइवेट स्कूल माहवार फीस के नाम पर एक साथ दो माह के लिये  1200 रूपये तो कुछ 1500 रूपये जमा करवाते है| कुछ स्कूलों में  तीन माह की फीस 1500 जमा कराई जाती थी लेकिन अब उन्ही स्कूलों की फीस सिर्फ दो माह की 1800 रूपये कर दी गई है| इतनी भारी भरकम फीस लेने के बाद भी इन स्कूलों का पेट भरता हुआ नज़र नहीं आता ऐसे स्कूल  साईकिल स्टैंड के नाम पर 400 रूपये सालाना जमा करवाते है जिसे जमा करना एक मजबूरी में शुमार होता है| दूसरी तरह स्कूल में वार्षिक समारोह के नाम 200 रूपये तो ऑनलाइन प्रैक्टिकल के नाम पर 100 रूपये ले कर अभिभावकों का खून चूसते नज़र आते है | ऐसे स्कूलों का अभिभावकों से पैसा वसूलने का दौर यही ख़तम नहीं होता स्कूल से जाने वाले बच्चो के पिकनिक/ टूर के नाम पर 300 से 500 रूपये और वसूले जाते है| एग्जाम फीस भी अलग से ;लिये जाने का खेल भी निराला है | ऐसे में गरीब और मध्यम परिवार जाये तो जाये कहाँ? पैसे वाले अभिभावक इनकी मनमानी पर कोई आपत्ति नहीं करते जबकि गरीब और मध्यम परिवार के आपत्ति करने पर जवाब दिया जाता  है की अगर आप इतनी फीस नहीं दे सकते तो किसी और सस्ते स्कूल में अपने बच्चो का दाखिला दिला दो| आज के प्राइवेट स्कूल भी सरकारी स्कूल की तर्ज पर चलने लगे है स्कूल में कम घर पर मोटी फीस लेकर पढ़ाने का दौर भी खूब चलने लगा है| 
बहरहाल सोचना ये है की क्या ऐसे में एक गरीब और मध्यम परिवार के बच्चो को आसमान की बुलंदियों तक पहुचने का अधिकार नहीं है?  इनकी क्या गलती है की ये गरीब है? इनकी क्या गलती है की ये एक मोटी फीस देने में सक्षम नहीं है| आज आवश्यकता है ऐसे परिवार के बच्चो के बारे में सोचने की| सरकार को जागना होगा, ऐसे स्कूलों की मनमानी पर रोक लगानी होगी नहीं तो हम कई ऐसे होनहार बच्चो से हाथ दो बैठेंगे जो हमारे देश का नाम रोशन करने के लिये बेहतर शिक्षा पाने के इंतज़ार में है |