Saturday, November 29, 2014

माई नेम इज साल्टः बिना किसी बयान या साक्षात्कार के बनी फिल्म

- जेड.एन.आई.न्यूज़ डॉट कॉम 

गुजरात के कच्छ के रण में 40 हजार नमक मजदूर परिवारों को उनके काम की पर्याप्त मजदूरी भी नहीं मिलती है फिर भी वे 8 महीने कड़ी मेहनत से नमक पैदा करते हैं। उन्हें उचित मजदूरी इसलिए भी नहीं मिल पाती क्योंकि वो असंगठित हैं। लेकिन यह फीचर जैसी लंबी डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘माई नेम इज साल्ट’ की थीम नहीं है। यह कला फिल्म की तरह है जिसमें कोई भी बयान या साक्षात्कार नहीं है और फिल्म सिनेमाई अनुभवों से आगे बढ़ती है। ये टिप्पणी इस डॉक्यूमेंट्री की निर्देशक फरीदा पाचा की है जो उन्होंने आईएफएफआई में इसके प्रदर्शन के बात कही है।

फिल्म में बातचीत नहीं होने के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि “मेरी ये कोशिश रही कि मेरी फिल्म किसी भी तरह की पूर्व धारणाओं से मुक्त रहे और इस आजादी की वजह से ही इस बात की गुंजाइश बन सकी कि ये कला फिल्म लगे।” डॉक्यूमेंट्री बनाने की आर्थिक संभावनाओं के बारे में उन्होंने कहा कि “पूरी दुनिया के स्तर पर सरकारी फंड का दायरा सिकुड़ रहा है और यही वजह है कि फिल्म निर्माता बहुत से लोगों से फंड ले रहे हैं। मैंने भी लोगों से फंड लिया। यह विकसित देशों का चलन है जहां आम लोगों किसी फिल्म के प्रोजेक्ट के लिए आगे आकर सहयोग देते हैं।”

1972 में मुंबई में जन्मी सुश्री फरीदा पाचा ने साउथ इलिनियोस यूनिवर्सिटी, यूएसए से फिल्म निर्माण में एमएफए किया है। उन्होंने कई सारी प्रायोगिक, शैक्षिक व डॉक्यूमेंट्री फिल्में बनाई हैं। उनकी आंध्र प्रदेश के दलित किसानों पर आधारित डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘द सीडकीपर’ ने 2006 में राष्ट्री फिल्म पुरस्कार जीता था। ‘’माई नेम इज साल्ट’ उनकी पहली फीचर जैसी लंबी डॉक्यूमेंट्री है, जिसने ढेर सारी फिल्मों के बीच एमस्टर्डम में आईडीएफए 2013 का फर्स्ट एपियरेंश अवॉर्ड जीता था। इसके अलावा हांगकांग, मैड्रिड, एडिनबर्ग में मुख्य पुरस्कार व डॉक्यूमेंट्री फिल्म में बेस्ट सिनेमेटोग्राफी के लिए जर्मन कैमेरा अवॉर्ड 2014 भी जीता है। फरीदा ज्यूरिख, स्वि‍ट्जरलैंड में रहती व काम करती हैं। 

Friday, November 28, 2014

आवारा कुत्तों का बसेरा बना जिला महिला चिकित्सालय बस्ती !


- जेड.एन.आई.न्यूज़ डॉट कॉम 


अस्पताल में आराम करता कुत्ता 
बस्ती, उत्तर प्रदेश : ये तस्वीर है बस्ती जिले के महिला जिला चिकित्सालय के जनरल वार्ड की । इसे देख कर यही कहा जा सकता है कि यहाँ की साफ़ सफाई और देख भाल करने वाले या तो है नहीं या फिर ड्यटी के नाम पर खाना पूर्ती कर रहे है ।
आजकल जहाँ मरीज़ों को सरकारी अस्पताल में बेड तक बड़ी मुश्किल से मिलती है यहाँ आवारा कुत्तो को बाकायदा साफ़ बेड नसीब हो रही है । मरीज़ अस्पताल में संक्रमण के इलाज़ के लिये जाता है  लेकिन बस्ती के इस महिला चिकित्सालय में संक्रमण तो खुले आम घूम रहा है और किसी को नज़र भी नहीं आता । 

- बस्ती से ताबिश आलम की रिपोर्ट